- मुख्य सचिव हरियाणा सरकार ने दिए सिटीजन चार्टर को अमल में लाने के निर्देश
- जनता को डिस्पले बोर्ड के माध्यम से उपलब्ध करानी होंगी सभी तरह की सूचनाएं
- प्रदेश के सभी विभागों, बोर्डों व निगमों, मंडल आयुक्तों एवं उपायुक्तों को भेजी चिट्ठी
देवेंद्र दांगी।
रोहतक, 10 अगस्त।
हरियाणा प्रदेश में उन अधिकारियों व कर्मचारियों की अब खैर नहीं जो लोगों की फाइलों को दबाकर उन पर कुंडली मार कर बैठ जाते हैं और तब तक लोगों के चक्कर कटाते रहते हैं जब तक उनको सुविधा शुल्क के नाम पर रिश्वत नहीं मिल जाती। मुख्य सचिव हरियाणा सरकार ने पत्र जारी कर प्रदेश सरकार के सभी मंडलीय आयुक्त व उपायुक्त, सभी महकमों के विभागाध्यक्षों, बोर्ड व निगमों के प्रबंध निदेशकों, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार तथा सरकार के सभी प्रशासनिक सचिवों को अपने-अपने महकमों में सिटीजन चार्टरों को डिस्पले करवाने के निर्देश दिए हैं।
इसके अंतर्गत अब यह तय किया जाएगा कि सभी विभाग अपने महकमे से संबंधित जनता के अलग-अलग कार्य निपटाने का महकमे द्वारा निर्धारित समय, कार्य से संबंधित मांगे गए दस्तावेजों की सूची एवं निर्धारित फीस की जानकारी जनता को बाकायदा डिस्पले बोर्ड पर उपलब्ध कराएगा। इतना ही नहीं अगर नियमानुसार एवं निर्धारित किए वक्त में काम न हो तो उसकी शिकायत कहां पर की जाए? इसकी जानकारी भी स्टेट के सभी विभागों को अपने-अपने डिस्पले बोर्ड पर अंकित करनी होगी। इसके अलावा संबंधित शिकायत सुनने वाले अधिकारियों के पद, नाम व फोन नंबर तथा शिकायत के निपटारे की समय सीमा को भी बाकायदा डिस्पले करना होगा ताकि उन अधिकारियों की मनमानी पर रोक लग सके जो नागरिकों की फाइल दबाकर सुविधा शुल्क के नाम पर धन ऐंठन के आदी हो चुके हैं।
हरियाणा में यह प्रावधान लागू कराने का श्रेय सूचना अधिकार कार्यकत्र्ता एवं सेतू नाम की सामाजिक संस्था के अध्यक्ष सतप्रकाश को जाएगा क्योंकि उनके द्वारा आर.टी.आई. के तहत मांगी गई सूचनाओं पर अमल कराने की व्यवस्था में यह प्रावधान लागू किया जाएगा। पंजाब केसरी से बातचीत में सतप्रकाश ने बताया कि उन्होंने 6 फरवरी, 2010 को मुख्य सचिव हरियाणा से आर.टी.आई. लगाकर पूछा कि करीब 12 वर्ष पहले तत्कालीन प्रदेश सरकार ने भारत सरकार के निर्देशों पर प्रदेश सरकार के प्रत्येक महकमों को अपने-अपने महकमे का सिटीजन चार्टर बनवाने व इसको डिस्पले करवाने के निर्देश दिए थे लेकिन तत्कालीन प्रदेश सरकार की ढिलाई व इच्छाशक्ति के कमी के कारण इस पर अमल नहीं हो पाया।
सतप्रकाश ने पूछा कि क्या मुख्य सचिव के पास सिटीजन चार्टर को अमल में करवाए जाने की शक्तियां प्राप्त हैं, अगर हैं तो इसे जनहित में अमल में करवाया जाए और अगर नहीं हैं तो भी इसको कैसे अमल में लाया जा सकता है, इसके लिए अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए जागरूक नागरिकों का मार्गदर्शन करे। मुख्य साचिव कार्यालय से जब कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो सतप्रकाश ने राज्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। मामले की सुनवाई में 29 जून 2010 को मुख्य सूचना आयुक्त जी. माधवन ने सतप्रकाश को परामर्श दिया कि सिटीजन चार्टर को अमल में करवाए जाने की शक्ति आयोग के पास नहीं है। इसके लिए आप मुख्य सचिव के पास अलग से प्रार्थना पत्र लिखे। आयोग तो केवल सूचनाएं दिलवा सकता है। अगर, प्रतिवादी पक्ष मामले के महत्व को समझे तो अपनी मर्जी से सिटीजन चार्टर को अमल में करवा सकता है। तत्पश्चात मुख्य सचिव ने मामले की गुणवत्ता व उपयोगिता को समझते हुए इसी संदर्भ में सतप्रकाश के एक अन्य 14 जून,2010 वाले आवेदन में सिटीजन चार्टर को पूर्णतया अमल में करवाए जाने की निर्देश दिए हैं, जिससे अब पूरे हरियाणा में यह व्यवस्था लागू करने के आदेश जारी हुए हैं।
अगर, आपको सच कहने, सुनने या पढने की आदत नहीं है तो माफ किजिएगा यह आपके लिए नहीं है...
शुक्रवार, अगस्त 13, 2010
केंद्रीय विद्यालय भाकली में खुलेगा
- आई.आई.एम. का शिलान्यास करेंगे सिब्बल
- सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रयास पर मिली हरी झंडी
देवेंद्र दांगी।
रोहतक,10 अगस्त।
करीब पांच वर्षों से जारी रोहतक के सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रयास के बाद आखिरकार रेवाड़ी जिले को केंद्रीय विद्यालय की सौगात मिल गई है। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने मंगलवार को दिल्ली में सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के आग्रह पर सहमति जताते हुए उनको आश्वस्त किया कि प्रयास किया जाएगा कि रेवाड़ी के भाकली क्षेत्र में खुलने वाले केंद्रीय विद्यालय की कक्षाएं वर्तमान सत्र से ही शुरू कर दी जाएं। ध्यान रहे कि भाकली में केंद्रीय विद्यालय खोलने की मांग पिछले कई वर्षों से की जा रही थी।
मंगलवार को दिल्ली में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के साथ हुई महत्वपूर्ण बैठक में सिब्बल ने सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा को आश्वस्त किया कि उनके द्वारा भाकली में केंद्रीय विद्यालय खोलने के लिए की मांग हर लिहाज से तर्कसंगत है। सांसद के आग्रह पर केंद्रीय विद्यालय को हरी झंडी देने के साथ-साथ सिब्बल ने विद्यालय की कक्षाएं भी मौजूदा सत्र से ही शुरू कराने का आश्वासन भी दिया। सांसद ने कहा कि चूंकि भाकली, रेवाड़ी, साल्हावास व झज्जर क्षेत्र के हजारों जवान देश की सीमाओं की सुरक्षा में लगे हैं। ऐसे में वर्षों से इलाके के लोगों की मांग रही है कि क्षेत्र में केंद्रीय विद्यालय स्थापित किया जाए। सांसद ने कहा कि हालांकि उनकी मांग पर क्षेत्र में केंद्रीय विद्यालय खोलने के मामले में केंद्रीय विद्यालय संगठन ने सैद्धांतिक तौर पर गत वर्ष ही मंजूरी दे दी थी। मंत्रालय से हरी झंडी मिलने के साथ ही मौजूदा सत्र से केंद्रीय विद्यालय की कक्षाएं शुरू करने की मांग को भी स्वीकृत कर लिया गया है।
दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि दक्षिण हरियाणा में केंद्रीय विश्वविद्यालय के साथ ही बेहतर शैक्षिक माहौल का विकास किया जा रहा है। भाकली का केंद्रीय विद्यालय इसी दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा कि गुणवत्तापरक शिक्षा पर जोर रखते हुए शिक्षण के अन्य संस्थान इलाके में लाने के प्रयास जारी रहेंगे। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने सांसद से रोहतक में आई.आई.एम. की कक्षाओं के बारे में भी जानकारी ली। गौरतलब है कि उत्तर भारत का एक मात्र आई.आई.एम. संस्थान रोहतक में स्थापित किया गया है।
सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने बताया कि 200 एकड़ क्षेत्र में करीब 800 करोड़ रुपए की लागत से स्थापित होने वाले आई.आईएम. का शिलान्यास गरनावठी (रोहतक) में 3 सितंबर को कपिल सिब्बल करेंगे। सांसद ने कहा कि हालांकि आई.आई.एम. की कक्षाएं महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय प्रांगण में पहले ही शुरू की जा चुकी है। उन्होंने कहा कि 11वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत मानव संसाधन मंत्रालय ने देश में सात आई.आई.एम. खोलने का निर्णय लिया था जिनमें से एक रोहतक में खोला गया है।
- सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रयास पर मिली हरी झंडी
देवेंद्र दांगी।
रोहतक,10 अगस्त।
करीब पांच वर्षों से जारी रोहतक के सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रयास के बाद आखिरकार रेवाड़ी जिले को केंद्रीय विद्यालय की सौगात मिल गई है। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने मंगलवार को दिल्ली में सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के आग्रह पर सहमति जताते हुए उनको आश्वस्त किया कि प्रयास किया जाएगा कि रेवाड़ी के भाकली क्षेत्र में खुलने वाले केंद्रीय विद्यालय की कक्षाएं वर्तमान सत्र से ही शुरू कर दी जाएं। ध्यान रहे कि भाकली में केंद्रीय विद्यालय खोलने की मांग पिछले कई वर्षों से की जा रही थी।
मंगलवार को दिल्ली में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के साथ हुई महत्वपूर्ण बैठक में सिब्बल ने सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा को आश्वस्त किया कि उनके द्वारा भाकली में केंद्रीय विद्यालय खोलने के लिए की मांग हर लिहाज से तर्कसंगत है। सांसद के आग्रह पर केंद्रीय विद्यालय को हरी झंडी देने के साथ-साथ सिब्बल ने विद्यालय की कक्षाएं भी मौजूदा सत्र से ही शुरू कराने का आश्वासन भी दिया। सांसद ने कहा कि चूंकि भाकली, रेवाड़ी, साल्हावास व झज्जर क्षेत्र के हजारों जवान देश की सीमाओं की सुरक्षा में लगे हैं। ऐसे में वर्षों से इलाके के लोगों की मांग रही है कि क्षेत्र में केंद्रीय विद्यालय स्थापित किया जाए। सांसद ने कहा कि हालांकि उनकी मांग पर क्षेत्र में केंद्रीय विद्यालय खोलने के मामले में केंद्रीय विद्यालय संगठन ने सैद्धांतिक तौर पर गत वर्ष ही मंजूरी दे दी थी। मंत्रालय से हरी झंडी मिलने के साथ ही मौजूदा सत्र से केंद्रीय विद्यालय की कक्षाएं शुरू करने की मांग को भी स्वीकृत कर लिया गया है।
दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि दक्षिण हरियाणा में केंद्रीय विश्वविद्यालय के साथ ही बेहतर शैक्षिक माहौल का विकास किया जा रहा है। भाकली का केंद्रीय विद्यालय इसी दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा कि गुणवत्तापरक शिक्षा पर जोर रखते हुए शिक्षण के अन्य संस्थान इलाके में लाने के प्रयास जारी रहेंगे। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने सांसद से रोहतक में आई.आई.एम. की कक्षाओं के बारे में भी जानकारी ली। गौरतलब है कि उत्तर भारत का एक मात्र आई.आई.एम. संस्थान रोहतक में स्थापित किया गया है।
सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने बताया कि 200 एकड़ क्षेत्र में करीब 800 करोड़ रुपए की लागत से स्थापित होने वाले आई.आईएम. का शिलान्यास गरनावठी (रोहतक) में 3 सितंबर को कपिल सिब्बल करेंगे। सांसद ने कहा कि हालांकि आई.आई.एम. की कक्षाएं महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय प्रांगण में पहले ही शुरू की जा चुकी है। उन्होंने कहा कि 11वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत मानव संसाधन मंत्रालय ने देश में सात आई.आई.एम. खोलने का निर्णय लिया था जिनमें से एक रोहतक में खोला गया है।
मदवि में रोल नंबरों का फर्जीवाड़ा-2
एक नहीं पांच को जारी किये "ये थे फर्जी रोल नंबर
- पंजाब केसरी ने दो रोज पहले किया था फर्जीवाड़े का पर्दाफाश
देवेंद्र दांगी।
रोहतक, 12 अगस्त।
दो दिन पूर्व महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में रोल नंबर के फर्जीवाड़े का पर्दाफाश करने के बाद कुछ और सनसनीखेज तथ्य हमारे हाथ लगे हैं। नया खुलासा हुआ है कि मदवि की रिजल्ट ब्रांच-वन के कर्मचारियों ने बी.पी.एड कोर्स के लिए महज राशिदा जमाल को ही फर्जी रोल नंबर जारी नहीं किया था, बल्कि फीलगुड के फेर में उन्होंने चार अन्य लोगों को भी ऐसे ही फर्जी रोल नंबर जारी कर रखेे थे। दिलचस्प बात तो यह भी है कि इन सभी चारों लोगों का संबंध भी नारनौल के गांव अमरपुर जोरासी स्थित संस्कृति इंस्टीच्यूट ऑफ एजूकेशन एंड टैक्रोलॉजी से ही था, जिसकी मान्यता इस मामले के पर्दाफाश होने के बाद खतरे में पड़ गई है।
इस पूरे मामले में सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि राशिदा जमाल समेत उक्त पांच लोगों में से तीन फर्जी रोल नंबर के बल पर बी.पी.एड कोर्स के संपूर्ण पेपरों की वार्षिक परीक्षा बिना रोक-टोक देने में कामयाब रहे। इतना ही नहीं, इन सभी लोगों ने परीक्षा में अपीयर होकर परीक्षा शीट पर अपने हस्ताक्षर भी किये। पूरी तैयारी के साथ परीक्षा देने वाले इन लोगों को उस वक्त यह कतई महसूस नहीं हुआ होगा कि जिस रोल नंबर के आधार पर वे यह परीक्षा दे रहे हैं, वे उनके नहीं, बल्कि उन विद्यार्थियों के हैं, जिनकी जगह दाखिला देने के नाम पर संस्कृति कालेज के प्राचार्य ने उनसे भारी-भरकम फीस वसूल रखी है।
इस मामले की गहराई तक जांच करने वाली विश्वविद्यालय की दो सदस्यीय जांच कमेटी ने भी अपनी तफ्तीश में यह माना है कि रिजल्ट ब्रांच के कर्मचारियों ने पांच लोगों को ऐसे रोल नंबर जारी किये थे, जो पहले ही इसी कोर्स के अन्य विद्यार्थियों को जारी किये जा चुके थे। जहां राशिदा जमाल को एकता गंगवार का रोल नंबर 441654 दोबारा से जारी किया गया था, वहीं अमित जोशी व मुकेश चंद ऐसे युवक थे, जिन्हें मेनका तथा छाया गंगवार नामक दो परीक्षार्थियों के क्रमश: 441655 व 441656 रोल नंबर जारी किये गये थे।
चूंकि, ये सभी रोल नंबर विश्वविद्यालय की रिजल्ट ब्रांच ने ऑफिशियल तौर पर जारी किये थे लिहाजा इसमें किसी तरह के फाऊल प्ले की संभावना कम ही थी। यही वजह थी कि उक्त सभी तीनों लोग भी यही समझ कर बी.पी.एड की परीक्षा देते रहे कि यह उनका रोल नंबर है और अगर परीक्षा में पास होते हैं तो कोर्स की डी.एम.सी. भी उन्हीं के नाम से जारी की जायेगी। मगर, ऐसा नहीं हुआ और परीक्षा सम्पन्न होने के दो महीने बाद जब कोर्स का रिजल्ट घोषित किया गया तो उक्त सभी लोगों के पैरों तले की जमीन खिसक गई। क्योंकि, जिन रोल नंबर्स के साथ उन्होंने बी.पी.एड कोर्स की परीक्षाएं दी थी उन रोल नंबर्स के रिजल्टस क्रमश: छाया गंगवार, मोनिका व एकता गंगवार के नाम से आऊट किये गये थे। ऐसा होने के बाद ही उक्त तीनों लोगों को यह अहसास हुआ कि दाल में कहीं न कहीं काला है और उनके साथ संस्कृति कालेज व विश्वविद्यालय ने जालसाजी की है।
इसी जालसाजी का पता लगाने के मकसद से ही राशिदा जमाल ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को लिखित शिकायत कर मामले की गहनता से जांच करवाने की गुहार लगाई थी। शिकायत में राशिदा जमाल ने संस्कृति कालेज के प्राचार्य के खिलाफ संगीन आरोप लगाते हुए कालेज की मान्यता रद्द करने की मांग की थी। राशिदा का कहना था कि कालेज प्राचार्य ने सत्र 2008-09 हेतु बी.पी.एड कोर्स में दाखिला देने की एवज में शुरूआत में उससे 40 हजार रुपए और इसके बाद पांच-पांच हजार रुपए कई बार और लिये थे। हालांकि, अप्रैल 2009 में उसने कोर्स के प्रैक्टिकल एग्जाम और बाद में एनुअल एग्जाम भी दिये थे मगर, जब सितंबर माह में रिजल्ट आऊट हुआ तो जिस रोल नंबर पर उसने परीक्षा दी थी, उस पर किसी एकता गंगवार का नाम लिखा हुआ मिला।
ध्यान रहे हमने दो दिन पूर्व इस संबंध में एक विस्तृत समाचार प्रकाशित कर रोल नंबर के नाम पर विश्वविद्यालय में चल रहे फर्जीवाड़े का पर्दाफाश किया था। खबर में बताया गया था कि विश्वविद्यालय के कर्मचारी किस तरह फीलगुड कर एक-एक रोल नंबर दो-दो लोगों को जारी कर रहे हैं।
- पंजाब केसरी ने दो रोज पहले किया था फर्जीवाड़े का पर्दाफाश
देवेंद्र दांगी।
रोहतक, 12 अगस्त।
दो दिन पूर्व महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में रोल नंबर के फर्जीवाड़े का पर्दाफाश करने के बाद कुछ और सनसनीखेज तथ्य हमारे हाथ लगे हैं। नया खुलासा हुआ है कि मदवि की रिजल्ट ब्रांच-वन के कर्मचारियों ने बी.पी.एड कोर्स के लिए महज राशिदा जमाल को ही फर्जी रोल नंबर जारी नहीं किया था, बल्कि फीलगुड के फेर में उन्होंने चार अन्य लोगों को भी ऐसे ही फर्जी रोल नंबर जारी कर रखेे थे। दिलचस्प बात तो यह भी है कि इन सभी चारों लोगों का संबंध भी नारनौल के गांव अमरपुर जोरासी स्थित संस्कृति इंस्टीच्यूट ऑफ एजूकेशन एंड टैक्रोलॉजी से ही था, जिसकी मान्यता इस मामले के पर्दाफाश होने के बाद खतरे में पड़ गई है।
इस पूरे मामले में सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि राशिदा जमाल समेत उक्त पांच लोगों में से तीन फर्जी रोल नंबर के बल पर बी.पी.एड कोर्स के संपूर्ण पेपरों की वार्षिक परीक्षा बिना रोक-टोक देने में कामयाब रहे। इतना ही नहीं, इन सभी लोगों ने परीक्षा में अपीयर होकर परीक्षा शीट पर अपने हस्ताक्षर भी किये। पूरी तैयारी के साथ परीक्षा देने वाले इन लोगों को उस वक्त यह कतई महसूस नहीं हुआ होगा कि जिस रोल नंबर के आधार पर वे यह परीक्षा दे रहे हैं, वे उनके नहीं, बल्कि उन विद्यार्थियों के हैं, जिनकी जगह दाखिला देने के नाम पर संस्कृति कालेज के प्राचार्य ने उनसे भारी-भरकम फीस वसूल रखी है।
इस मामले की गहराई तक जांच करने वाली विश्वविद्यालय की दो सदस्यीय जांच कमेटी ने भी अपनी तफ्तीश में यह माना है कि रिजल्ट ब्रांच के कर्मचारियों ने पांच लोगों को ऐसे रोल नंबर जारी किये थे, जो पहले ही इसी कोर्स के अन्य विद्यार्थियों को जारी किये जा चुके थे। जहां राशिदा जमाल को एकता गंगवार का रोल नंबर 441654 दोबारा से जारी किया गया था, वहीं अमित जोशी व मुकेश चंद ऐसे युवक थे, जिन्हें मेनका तथा छाया गंगवार नामक दो परीक्षार्थियों के क्रमश: 441655 व 441656 रोल नंबर जारी किये गये थे।
चूंकि, ये सभी रोल नंबर विश्वविद्यालय की रिजल्ट ब्रांच ने ऑफिशियल तौर पर जारी किये थे लिहाजा इसमें किसी तरह के फाऊल प्ले की संभावना कम ही थी। यही वजह थी कि उक्त सभी तीनों लोग भी यही समझ कर बी.पी.एड की परीक्षा देते रहे कि यह उनका रोल नंबर है और अगर परीक्षा में पास होते हैं तो कोर्स की डी.एम.सी. भी उन्हीं के नाम से जारी की जायेगी। मगर, ऐसा नहीं हुआ और परीक्षा सम्पन्न होने के दो महीने बाद जब कोर्स का रिजल्ट घोषित किया गया तो उक्त सभी लोगों के पैरों तले की जमीन खिसक गई। क्योंकि, जिन रोल नंबर्स के साथ उन्होंने बी.पी.एड कोर्स की परीक्षाएं दी थी उन रोल नंबर्स के रिजल्टस क्रमश: छाया गंगवार, मोनिका व एकता गंगवार के नाम से आऊट किये गये थे। ऐसा होने के बाद ही उक्त तीनों लोगों को यह अहसास हुआ कि दाल में कहीं न कहीं काला है और उनके साथ संस्कृति कालेज व विश्वविद्यालय ने जालसाजी की है।
इसी जालसाजी का पता लगाने के मकसद से ही राशिदा जमाल ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को लिखित शिकायत कर मामले की गहनता से जांच करवाने की गुहार लगाई थी। शिकायत में राशिदा जमाल ने संस्कृति कालेज के प्राचार्य के खिलाफ संगीन आरोप लगाते हुए कालेज की मान्यता रद्द करने की मांग की थी। राशिदा का कहना था कि कालेज प्राचार्य ने सत्र 2008-09 हेतु बी.पी.एड कोर्स में दाखिला देने की एवज में शुरूआत में उससे 40 हजार रुपए और इसके बाद पांच-पांच हजार रुपए कई बार और लिये थे। हालांकि, अप्रैल 2009 में उसने कोर्स के प्रैक्टिकल एग्जाम और बाद में एनुअल एग्जाम भी दिये थे मगर, जब सितंबर माह में रिजल्ट आऊट हुआ तो जिस रोल नंबर पर उसने परीक्षा दी थी, उस पर किसी एकता गंगवार का नाम लिखा हुआ मिला।
ध्यान रहे हमने दो दिन पूर्व इस संबंध में एक विस्तृत समाचार प्रकाशित कर रोल नंबर के नाम पर विश्वविद्यालय में चल रहे फर्जीवाड़े का पर्दाफाश किया था। खबर में बताया गया था कि विश्वविद्यालय के कर्मचारी किस तरह फीलगुड कर एक-एक रोल नंबर दो-दो लोगों को जारी कर रहे हैं।
मदवि में रोल नंबरों का फर्जीवाड़ा-1
बिना दाखिला जारी किया रोल नंबर
- महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय का एक और चौंकाने वाला कारनामा
- जांच में दोषी पाये गये मदवि के दो कर्मचारी व एक कालेज का प्राचार्य
देवेंद्र दांगी
रोहतक, 10 अगस्त।
नित नये कारनामों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय ने एक और कारनामा कर दिखाया है। कारनामा भी ऐसा कि सुनने वाला दांतों तले अंगुलियां दबाये बिना न रहे। जी हां, विश्वविद्यालय ने बी.पी.एड कोर्स की वार्षिक परीक्षा हेतु एक ऐसे अभ्यर्थी को रोल नंबर जारी कर दिया, जिसने न तो इस कोर्स में दाखिला ले रखा था और न ही उसका नाम विश्वविद्यालय की रजिस्ट्रेशन ब्रांच में ही दर्ज था।
मामले का खुलासा तब हुआ जब राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने इस संबंध में मिली एक शिकायत बारे विश्वविद्यालय प्रशासन से जवाब मांगा। शिकायत की हकीकत जानने के लिए विश्वविद्यालय के आला अधिकारियों ने जब इस सनसनीखेज मामले की जांच करवाई तो उनकी आंखें भी फटी की फटी रह गई क्योंकि शिकायत में जारी अभ्यर्थी को रोल नंबर जारी करने की कही गई बात सौलह आने सही थी। जांच में पता चला कि इस सनसनीखेज मामले के सूत्रधार थे विश्वविद्यालय की रिजल्ट-वन ब्रांच के दो कर्मचारी, जिन्होंने नारनौल के गांव अमरपुर जोरासी स्थित संस्कृति इंस्टीच्यूट ऑफ एजुकेशन एंड टैक्रोलॉजी के प्राचार्य के साथ मिलकर इस मामले को अंजाम तक पहुंचाया था।
मामला उजागर होने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन इस कालेज की मान्यता रद्द करने की सोच रहा है, जिसके लिए उसने उक्त कालेज के प्रशासन को हाल ही में कारण बताओ नोटिस भी जारी किया है। नोटिस में साफ-साफ कहा गया है कि क्यों न कालेज की मान्यता वापस ले ली जाये। साथ ही कालेज प्रशासन से इस संबंध में जल्द से जल्द जवाब देने के लिए भी लिखा गया है। हुआ यह था कि विश्वविद्यालय प्रशासन को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की ओर से एक शिकायत मिली थी। जिसमें शिकायतकर्ता राशिदा जमाल ने संस्कृति कालेज के प्राचार्य के खिलाफ संगीन आरोप लगाते हुए कालेज की मान्यता रद्द करने की मांग की थी।
राशिदा का कहना था कि उसने सत्र 2008-09 हेतु फरवरी 2009 में उक्त कालेज के बी.पी.एड कोर्स में दाखिला लिया था। जिसकी एवज में उसने 40 हजार रुपए कालेज में जमा करवाये थे। अप्रैल 2009 में उसने कोर्स के प्रैक्टिकल एग्जाम भी दिये थे मगर एग्जाम शीट पर उससे यह कहकर दस्तखत नहीं करवाये गये कि प्रैक्टिकल एग्जाम में दस्तखत की जरूरत नहीं होती। इसके एक महीने बाद उससे पांच हजार रुपए लेकर उसे कोर्स की वार्षिक परीक्षा हेतु रोल नंबर 441654 जारी कर दिया गया। उसने विधिवत रूप से सभी विषयों की परीक्षा दी मगर, जब सितम्बर माह में रिजल्ट आया तो उसके पैरों तले की जमीन खिसक गई क्योंकि जिस रोल नंबर पर उसने परीक्षा दी थी, उस पर किसी एकता गंगवार का नाम लिखा हुआ था।
राशिदा जमाल द्वारा जब इस मामले को कालेज प्राचार्य के संज्ञान में लाया गया तो उसने यह कहकर उससे 5 हजार रुपये और ऐंठ लिये कि यह कलेरिकल मिस्टेक की वजह से हुआ है, जिसे दुरस्त करवा दिया जायेगा। राशिदा ने इसके लिए दो महीनों का इंतजार भी किया मगर, न तो नाम ही बदला गया और न ही उसकी मार्कशीट ही उसे मिल पाई। इसके बाद अपने मामले की तह में जाने के लिए राशिदा ने आरटीआई एक्ट का सहारा लिया, जिसने एक ऐसे सनसनीखेज मामले का रहस्योद्घाटन किया, जिसकी कल्पना राशिदा ने कभी सपने में भी नहीं की थी। आरटीआई से पता चला कि विश्वविद्यालय की कालेज ब्रांच ने राशिदा को जो रोल नंबर दिया था, वही रोल नंबर एकता गंगवार को भी जारी किया गया था।
आरटीआई से यह भी खुलासा हुआ कि राशिदा जमाल का दाखिला महज भारी भरकम रकम ऐंठने के चक्कर में पहले से ही भरी गई एक सीट पर किया गया था। जिस पर एकता गंगवार को दाखिल किया जा चुका था। एकता ने बाकायदा बी.पी.एड कोर्स के प्रैक्टिकल एग्जाम दे रखे थे और एग्जाम शीट पर उसने दस्तखत भी किये थे। अपनी शिकायत में राशिदा का कहना था कि उसे अंधेरे में रखकर कालेज प्राचार्य ने उसके साथ जालसाजी की है जिसके चलते उसे मानसिक परेशानी भुगतने के साथ-साथ एक लाख रुपये का नुकसान भी उठाना पड़ा है लिहाजा प्राचार्य के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए इस कालेज की बी.पी. एड की मान्यता भी रद्द कर दी जाये।
मामले की संजीदगी के मद्देनजर विश्वविद्यालय प्रशासन ने दो सीनियर प्रोफेसर की एक जांच कमेटी का गठन कर दिया। जिसने अपनी जांच में विश्वविद्यालय के रिजल्ट ब्रांच-एक के लिपिक जयदेव व सहायक ईश्वर दहिया के साथ कालेज प्राचार्य को गड़बड़ी करने के लिए दोषी ठहरा दिया। जांच कमेटी का कहना था कि उक्त दोनों कर्मचारियों ने प्राचार्य से मिलीभगत कर बगैर तथ्य जांचे ही एक रोल नंबर दो अभ्यर्थियों को जारी कर दिया। जिसमें से एक अभ्यर्थी ने विधिवत तौर पर न तो कोर्स में दाखिला ले रखा था और न ही उसका रजिस्ट्रेशन विश्वविद्यालय में हुआ था। यही कारण था कि वार्षिक परीक्षा तो राशिदा जमाल ने दी मगर रिजल्ट एकता गंगवार के नाम से घोषित हो गया।
- महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय का एक और चौंकाने वाला कारनामा
- जांच में दोषी पाये गये मदवि के दो कर्मचारी व एक कालेज का प्राचार्य
देवेंद्र दांगी
रोहतक, 10 अगस्त।
नित नये कारनामों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय ने एक और कारनामा कर दिखाया है। कारनामा भी ऐसा कि सुनने वाला दांतों तले अंगुलियां दबाये बिना न रहे। जी हां, विश्वविद्यालय ने बी.पी.एड कोर्स की वार्षिक परीक्षा हेतु एक ऐसे अभ्यर्थी को रोल नंबर जारी कर दिया, जिसने न तो इस कोर्स में दाखिला ले रखा था और न ही उसका नाम विश्वविद्यालय की रजिस्ट्रेशन ब्रांच में ही दर्ज था।
मामले का खुलासा तब हुआ जब राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने इस संबंध में मिली एक शिकायत बारे विश्वविद्यालय प्रशासन से जवाब मांगा। शिकायत की हकीकत जानने के लिए विश्वविद्यालय के आला अधिकारियों ने जब इस सनसनीखेज मामले की जांच करवाई तो उनकी आंखें भी फटी की फटी रह गई क्योंकि शिकायत में जारी अभ्यर्थी को रोल नंबर जारी करने की कही गई बात सौलह आने सही थी। जांच में पता चला कि इस सनसनीखेज मामले के सूत्रधार थे विश्वविद्यालय की रिजल्ट-वन ब्रांच के दो कर्मचारी, जिन्होंने नारनौल के गांव अमरपुर जोरासी स्थित संस्कृति इंस्टीच्यूट ऑफ एजुकेशन एंड टैक्रोलॉजी के प्राचार्य के साथ मिलकर इस मामले को अंजाम तक पहुंचाया था।
मामला उजागर होने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन इस कालेज की मान्यता रद्द करने की सोच रहा है, जिसके लिए उसने उक्त कालेज के प्रशासन को हाल ही में कारण बताओ नोटिस भी जारी किया है। नोटिस में साफ-साफ कहा गया है कि क्यों न कालेज की मान्यता वापस ले ली जाये। साथ ही कालेज प्रशासन से इस संबंध में जल्द से जल्द जवाब देने के लिए भी लिखा गया है। हुआ यह था कि विश्वविद्यालय प्रशासन को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की ओर से एक शिकायत मिली थी। जिसमें शिकायतकर्ता राशिदा जमाल ने संस्कृति कालेज के प्राचार्य के खिलाफ संगीन आरोप लगाते हुए कालेज की मान्यता रद्द करने की मांग की थी।
राशिदा का कहना था कि उसने सत्र 2008-09 हेतु फरवरी 2009 में उक्त कालेज के बी.पी.एड कोर्स में दाखिला लिया था। जिसकी एवज में उसने 40 हजार रुपए कालेज में जमा करवाये थे। अप्रैल 2009 में उसने कोर्स के प्रैक्टिकल एग्जाम भी दिये थे मगर एग्जाम शीट पर उससे यह कहकर दस्तखत नहीं करवाये गये कि प्रैक्टिकल एग्जाम में दस्तखत की जरूरत नहीं होती। इसके एक महीने बाद उससे पांच हजार रुपए लेकर उसे कोर्स की वार्षिक परीक्षा हेतु रोल नंबर 441654 जारी कर दिया गया। उसने विधिवत रूप से सभी विषयों की परीक्षा दी मगर, जब सितम्बर माह में रिजल्ट आया तो उसके पैरों तले की जमीन खिसक गई क्योंकि जिस रोल नंबर पर उसने परीक्षा दी थी, उस पर किसी एकता गंगवार का नाम लिखा हुआ था।
राशिदा जमाल द्वारा जब इस मामले को कालेज प्राचार्य के संज्ञान में लाया गया तो उसने यह कहकर उससे 5 हजार रुपये और ऐंठ लिये कि यह कलेरिकल मिस्टेक की वजह से हुआ है, जिसे दुरस्त करवा दिया जायेगा। राशिदा ने इसके लिए दो महीनों का इंतजार भी किया मगर, न तो नाम ही बदला गया और न ही उसकी मार्कशीट ही उसे मिल पाई। इसके बाद अपने मामले की तह में जाने के लिए राशिदा ने आरटीआई एक्ट का सहारा लिया, जिसने एक ऐसे सनसनीखेज मामले का रहस्योद्घाटन किया, जिसकी कल्पना राशिदा ने कभी सपने में भी नहीं की थी। आरटीआई से पता चला कि विश्वविद्यालय की कालेज ब्रांच ने राशिदा को जो रोल नंबर दिया था, वही रोल नंबर एकता गंगवार को भी जारी किया गया था।
आरटीआई से यह भी खुलासा हुआ कि राशिदा जमाल का दाखिला महज भारी भरकम रकम ऐंठने के चक्कर में पहले से ही भरी गई एक सीट पर किया गया था। जिस पर एकता गंगवार को दाखिल किया जा चुका था। एकता ने बाकायदा बी.पी.एड कोर्स के प्रैक्टिकल एग्जाम दे रखे थे और एग्जाम शीट पर उसने दस्तखत भी किये थे। अपनी शिकायत में राशिदा का कहना था कि उसे अंधेरे में रखकर कालेज प्राचार्य ने उसके साथ जालसाजी की है जिसके चलते उसे मानसिक परेशानी भुगतने के साथ-साथ एक लाख रुपये का नुकसान भी उठाना पड़ा है लिहाजा प्राचार्य के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए इस कालेज की बी.पी. एड की मान्यता भी रद्द कर दी जाये।
मामले की संजीदगी के मद्देनजर विश्वविद्यालय प्रशासन ने दो सीनियर प्रोफेसर की एक जांच कमेटी का गठन कर दिया। जिसने अपनी जांच में विश्वविद्यालय के रिजल्ट ब्रांच-एक के लिपिक जयदेव व सहायक ईश्वर दहिया के साथ कालेज प्राचार्य को गड़बड़ी करने के लिए दोषी ठहरा दिया। जांच कमेटी का कहना था कि उक्त दोनों कर्मचारियों ने प्राचार्य से मिलीभगत कर बगैर तथ्य जांचे ही एक रोल नंबर दो अभ्यर्थियों को जारी कर दिया। जिसमें से एक अभ्यर्थी ने विधिवत तौर पर न तो कोर्स में दाखिला ले रखा था और न ही उसका रजिस्ट्रेशन विश्वविद्यालय में हुआ था। यही कारण था कि वार्षिक परीक्षा तो राशिदा जमाल ने दी मगर रिजल्ट एकता गंगवार के नाम से घोषित हो गया।
दूध-बर्फी ने बिगाड़ी साहब की सेहत
देवेंद्र दांगी।
रोहतक, 9 अगस्त। वैसे तो दूध को सेहत के लिए खासा लाभदायक बताया गया है मगर इसी दूध ने एक प्रशासनिक अधिकारी की सेहत बिगाड़ डाली। बेचारे, को वह डांट पड़ी कि शायद ही कभी ऐसी डांट के बारे में सोचा होगा। हालांकि, बाद में जनाब ने दूध का गिलास रख दिया और जनता की शिकायतों को नोट करने में ही अपनी भलाई समझी।
दरअसल, वाक्या उस वक्त पेश आया जब सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा सुबह-सवेरे गांव टिटौली में युवा पहलवान महिपत कुंडू को सम्मानित करने पहुंचे थे। सम्मान समारोह के बाद सांसद महोदय महिपत के ही घर पर चाय-नाश्ता ले रहे थे। समर्थकों की भारी भीड़ भी वहां जमा थी। इसी दौरान एक के बाद एक करके कई लोगों ने गांव की समस्याओं को लेकर सांसद महोदय से बातचीत करनी शुरू कर दी। कुछ देर तक तो दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने शांत स्वभाव से सबकी शिकायतें सुनना जारी रखा और उनको आश्वासन देते रहे मगर लोगों की शिकायतों को बढ़ता देख उन्होंने मौके पर मौजूद एक प्रशासनिक अधिकारी को आवाज लगाई मगर, ये अधिकारी जनता की शिकायतों एवं सांसद महोदय की मौजूदगी की अनदेखी करते हुए एक हाथ में दूध से भरा गिलास थामे थे दूसरे हाथ से बर्फी-पेड़ों का आनन्द लेने में मशगूल थे।
सांसद महोदय को इन्हें अपने पास बुलाने के लिए दो बार आवाज लगानी पड़ी। जब देखा कि लोगों की शिकायतें नोट करने की बजाय अधिकारी साहब दूध पीने एवं बर्फी खाने में मस्त हैं तो अक्सर शांत रहने वाले सांसद महोदय को गुस्सा आ गया। उनका गुस्सा एकदम से जायज भी था क्योंकि उक्त अधिकारी लोगों की शिकायतों पर ध्यान न देते हुए काफी देर से दूध एवं बर्फियों में ही मस्त था। ऐसे में सांसद दीपेंद्र हुड्डा का दूसरा ही रूप लोगों को आज देखने को मिला। उन्होंने अधिकारी को जनता-जनार्दन के सामने ही जमकर डांट पिलानी शुरू कर दी। अधिकारी भी सांसद महोदय का यह रूप देखकर एकदम से सकपका गए। उन्होंने दूध का गिलास रखने में ही अपनी भलाई समझी और तेज कदमों से सांसद महोदय के पास पहुंचे। तब तक सांसद जी का गुस्सा और भी बढ़ चुका था। उन्होंने इस अधिकारी को जमकर खरी-खोटी सुना डाली।
सांसद ने साफ शब्दों में इस अधिकारी को यह तक कह डाला कि यदि गांव वालों की इतनी शिकायतें हैं तो फिर हमारा राजनीति करने का क्या फायदा। जो अधिकारी मेरे लोगों की परेशानी ही दूर नहीं कर सकता वो बेशक अपना बोरिया बिस्तर बांधने की तैयारी कर ले। मेरे यहां पर ऐसे लापरवाह अधिकारी के लिए कोई जगह नहीं है। सांसद महोदय के तेवर देखते हुए अधिकारी ने अपनी डायरी और पैन निकालने में ही भलाई समझी और सॉरी सर.. सॉरी सर कहते हुए जनता की शिकायतें नोट करने में जुट गए। वैसे, रोहतक के सांसद दीपेंद्र हुड्डा को उनके शांत स्वभाव एवं विनम्र व्यवहार के लिए खास तौर से पहचाना जाता है मगर, आज उनके तेवर देखकर गांव के बड़े-बुजुर्ग भी कह उठे कि छौरे नै आज तोड़ पाड़ दिया।
बुजुर्ग चांद सिंह ने कहा कि लापरवाह अधिकारियां खातर म्हारे छौरे के ये तेवर बोहते जरूरी सै। ये अफसर न्यूए सीधे होवैंगे। खैर, सांसद के तेवरों से टिटौली के बाशिंदों को आज काफी खुशी हुई और उनको उम्मीद है कि अब गांव की समस्याएं जरूर हल होंगी और यदि नहीं हुई तो इस अधिकारी का बोरिया-बिस्तर कै डोरी तो जरूर बंध ज्यागी।
रोहतक, 9 अगस्त। वैसे तो दूध को सेहत के लिए खासा लाभदायक बताया गया है मगर इसी दूध ने एक प्रशासनिक अधिकारी की सेहत बिगाड़ डाली। बेचारे, को वह डांट पड़ी कि शायद ही कभी ऐसी डांट के बारे में सोचा होगा। हालांकि, बाद में जनाब ने दूध का गिलास रख दिया और जनता की शिकायतों को नोट करने में ही अपनी भलाई समझी।
दरअसल, वाक्या उस वक्त पेश आया जब सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा सुबह-सवेरे गांव टिटौली में युवा पहलवान महिपत कुंडू को सम्मानित करने पहुंचे थे। सम्मान समारोह के बाद सांसद महोदय महिपत के ही घर पर चाय-नाश्ता ले रहे थे। समर्थकों की भारी भीड़ भी वहां जमा थी। इसी दौरान एक के बाद एक करके कई लोगों ने गांव की समस्याओं को लेकर सांसद महोदय से बातचीत करनी शुरू कर दी। कुछ देर तक तो दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने शांत स्वभाव से सबकी शिकायतें सुनना जारी रखा और उनको आश्वासन देते रहे मगर लोगों की शिकायतों को बढ़ता देख उन्होंने मौके पर मौजूद एक प्रशासनिक अधिकारी को आवाज लगाई मगर, ये अधिकारी जनता की शिकायतों एवं सांसद महोदय की मौजूदगी की अनदेखी करते हुए एक हाथ में दूध से भरा गिलास थामे थे दूसरे हाथ से बर्फी-पेड़ों का आनन्द लेने में मशगूल थे।
सांसद महोदय को इन्हें अपने पास बुलाने के लिए दो बार आवाज लगानी पड़ी। जब देखा कि लोगों की शिकायतें नोट करने की बजाय अधिकारी साहब दूध पीने एवं बर्फी खाने में मस्त हैं तो अक्सर शांत रहने वाले सांसद महोदय को गुस्सा आ गया। उनका गुस्सा एकदम से जायज भी था क्योंकि उक्त अधिकारी लोगों की शिकायतों पर ध्यान न देते हुए काफी देर से दूध एवं बर्फियों में ही मस्त था। ऐसे में सांसद दीपेंद्र हुड्डा का दूसरा ही रूप लोगों को आज देखने को मिला। उन्होंने अधिकारी को जनता-जनार्दन के सामने ही जमकर डांट पिलानी शुरू कर दी। अधिकारी भी सांसद महोदय का यह रूप देखकर एकदम से सकपका गए। उन्होंने दूध का गिलास रखने में ही अपनी भलाई समझी और तेज कदमों से सांसद महोदय के पास पहुंचे। तब तक सांसद जी का गुस्सा और भी बढ़ चुका था। उन्होंने इस अधिकारी को जमकर खरी-खोटी सुना डाली।
सांसद ने साफ शब्दों में इस अधिकारी को यह तक कह डाला कि यदि गांव वालों की इतनी शिकायतें हैं तो फिर हमारा राजनीति करने का क्या फायदा। जो अधिकारी मेरे लोगों की परेशानी ही दूर नहीं कर सकता वो बेशक अपना बोरिया बिस्तर बांधने की तैयारी कर ले। मेरे यहां पर ऐसे लापरवाह अधिकारी के लिए कोई जगह नहीं है। सांसद महोदय के तेवर देखते हुए अधिकारी ने अपनी डायरी और पैन निकालने में ही भलाई समझी और सॉरी सर.. सॉरी सर कहते हुए जनता की शिकायतें नोट करने में जुट गए। वैसे, रोहतक के सांसद दीपेंद्र हुड्डा को उनके शांत स्वभाव एवं विनम्र व्यवहार के लिए खास तौर से पहचाना जाता है मगर, आज उनके तेवर देखकर गांव के बड़े-बुजुर्ग भी कह उठे कि छौरे नै आज तोड़ पाड़ दिया।
बुजुर्ग चांद सिंह ने कहा कि लापरवाह अधिकारियां खातर म्हारे छौरे के ये तेवर बोहते जरूरी सै। ये अफसर न्यूए सीधे होवैंगे। खैर, सांसद के तेवरों से टिटौली के बाशिंदों को आज काफी खुशी हुई और उनको उम्मीद है कि अब गांव की समस्याएं जरूर हल होंगी और यदि नहीं हुई तो इस अधिकारी का बोरिया-बिस्तर कै डोरी तो जरूर बंध ज्यागी।
शुक्रवार, अगस्त 06, 2010
सोनम ने डुबोए पापा के पैसे
ब्रिटिश लेखिका जेन ऑस्टिन के उपन्यास एमा पर आधारित है फिल्म आयशा आज सनसिटी मल्टीप्लैक्स में रीलिज हुई। होम प्रोडक्शन में बनी फिल्म में सोनम ने पापा के पैसे डुबो दिए हैं। फिल्म बहुत ही स्लो है। सोनम को प्रोजेक्ट करने के चक्कर में फिल्म बैठ गई। अभय देओल व सोनम कपूर जैसे युवा कलाकारों से सजी यह फिल्म आज के युवाओं के लिए है और उन्हीं के लाइफस्टाइल को दर्शाती है। कहानी बहुत ही सिंपल है। मगर बोरिंग तरीके से फिल्माई गई है। फिल्म प्रेम कहानी नहीं है पर इसके सभी पात्र प्रेम में उलझे रहते हैं। आयशा एक ऐसी लडक़ी जो चाहती है सब उसी के अनुसार चलें, उसी के अनुसार सोचें, उसे हर किसी की लाइफ में दखल देना पसंद है। उसकी मुलाकात अर्जुन बने अभय देओल से होती है जो उसकी इस आदत को पसंद नहीं करता है। आयशा के बेस्ट फ्रेंड पिंकी, शेफाली, रणबीर और ध्रुव हैं। परंतु पिंकी बनी इरा दुबे की शोख अदाएं व शैफाली ठाकुर बनी अमृता पुरी का भोलापन देखने लायक है। फिल्म में अमृता पुरी को बहादुरगढ़ का निवासी बताया गया है मतलब एक और फिल्म में हरियाणा को तवज्जो मिलने लगा है। न्यूयार्क रिटर्न आरती बनी लिसा हायडेन में हॉलीवुड एक्ट्रेस एंजलीना जोली का लुक दिखता है। फिल्म का म्यूजिक दिया है अमित त्रिवेदी व गीत लिखे है जावेद अख्तर ने। फिल्म में आठ गाने है जिसमें दो रिमिक्स है शीर्षक गीत आयशा पहले ही हिट हो चुका है और गल मिठी-मिठी गीत शादी-ब्याहों में खूब बजने वाला है। इन दो गानों को छोडक़र कोई गाना गुनगुनाने लायक भी नहीं है। इस फिल्म को महिलाओं की फिल्म भी कहा जा सकता है क्योंकि इसके निर्माता रिया कपूर, निर्देशक राजश्री ओझा, लेखक देविका भगत, कास्टिंग निर्देशक अमिता सहगल, प्रोडक्शन डिजायनिंग श्रुति गुप्ते,, संवाद लेखन दीपिका और ऋतु भाटिया व मुख्य कलाकार सोनम कपूर शामिल है। फिल्म चूंकि महिलाओं ने बनाई है परंतु महिलाओं वाली बात नहीं आ पाती है न ही दर्शकों में प्यार का अहसास जग पाता है और न ही भावनाओं का ’वार उमड़ता है। आयशा से दर्शकों को जो उम्मीदें थी वह उन पर पूरा तो क्या आधा भी नहीं उतरती।
साभार : संदीप कुमार सैनी
साभार : संदीप कुमार सैनी
गुरुवार, अगस्त 05, 2010
हमारे लिए तुम मर गई, तुम्हारे लिए हम
लड़की के पिता बोले...
थाने में ही बिलख पड़ा लड़की का पिता
20 अगस्त को कोर्ट में पेश होने के निर्देश
देवेंद्र दांगी।
रोहतक, 5 अगस्त 2010।
बेटी, तुमने ठीक नहीं किया। एक बार हमें बताकर तो देखती, क्या मालूम हम लोग खुशी-खुशी ही तुम दोनों की शादी करा देते। तुमने हमें कहीं खड़े होने लायक भी नहीं छोड़ा। आज के बाद हमारे लिए तुम मर गई और तुम्हारे लिए हम...।
प्रेम विवाह रचाने वाली सीमा के पिता राजङ्क्षसह यह कहते-कहते थाने में पुलिस वालों के सामने ही रो पड़े। पुलिस वालों ने किसी तरह उनको चुप कराया। इंटर कास्ट लव मैरिज के बाद नव दम्पति ने कोर्ट में पेश होकर लड़की के परिजनों से अपनी जान का खतरा बताया था। जिस पर कोर्ट ने सीमा की मां, पिता एवं कुछ करीबी लोगों के नाम सम्मन जारी किए थे। इनकी तामील करते हुए पुलिस ने लड़की के परिजनों को आज थाने में बुलाया था। पिता राजसिंह अपने कुछ करीबी लोगों को लेकर शिवाजी कालोनी पुलिस स्टेशन पहुंचा था। वहां पर सीमा एवं सतीश से उसका सामना हुआ तो राजसिंह अधिक देर तक अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाया।
औलाद द्वारा उठाए गए इस कदम के बाद एक पिता की बेबसी यहां साफ-साफ झलकी। राजसिंह ने आते ही सबसे पहले बेटी सीमा से पूछा कि वह खुश तो है ना। इसके बाद उसने वे शब्द कहे जिसका जिक्र हम खबर में ऊपर कर चुके हैं। राजङ्क्षसह भावनाओं पर काबू नहीं रख पाया और उसकी आंखों से आसूं छलक पड़े। साथ आए लोगों एवं पुलिस वालों ने उसे समझाबुझा कर चुप कराया। राजसिंह ने कहा कि लड़की ने ठीक नहीं किया। उसने बेटी द्वारा उठाए इस कदम को गलत मानते हुए साफ कहा कि सीमा बेटी तुमने हमें कहीं का नहीं छोड़ा। एक बार अपनी बहनों और हमारे बारे में सोचकर तो देखती, अब समाज के सामने कैसे खड़ा रह पाउंगा...। आज के बाद हमारा तुमसे कोई वास्ता नहीं और तुम भी भूल जाना कि तुम्हारे मां-बाप या भाई-बहन भी हैं। हमारे घर में तुम्हारे लिए अब कोई जगह नहीं है। तुमने अपने आप ही अपना सब-कुछ खत्म कर लिया है। भविष्य में हमसे किसी तरह की भी उम्मीद मत रखना।
इस दौरान राजसिंह के साथ आए एक व्यक्ति, जिसके नाम पर सम्मन जारी हुए हैं, की सीमा के पति सतीश के साथ हलकी-फुल्की बहस भी हो गई। उसका कहना था कि उन्होंने उसका नाम किस बिनाह पर लिखवाया है जबकि उसका उनके मामले से कोई लेना-देना ही नहीं रहा। खैर जैसे-तैसे पुलिस वालों ने उनको समझाया और कोर्ट के आदेश उन सभी को दिखाते हुए आगामी 20 अगस्त को कोर्ट में पेश होने को कहा। इसके बाद राजसिंह एवं उसके साथ आए करीबी लोग थाने से चले गए। उनके जाने के करीब आधे घंटे बाद नवदम्पति को सुरक्षा उपलब्ध कराते हुए पुलिस वाले उनको न्यू राजेंद्र कालोनी के लिए लेकर थाने से रूख्सत हो गए।
थाने में ही बिलख पड़ा लड़की का पिता
20 अगस्त को कोर्ट में पेश होने के निर्देश
देवेंद्र दांगी।
रोहतक, 5 अगस्त 2010।
बेटी, तुमने ठीक नहीं किया। एक बार हमें बताकर तो देखती, क्या मालूम हम लोग खुशी-खुशी ही तुम दोनों की शादी करा देते। तुमने हमें कहीं खड़े होने लायक भी नहीं छोड़ा। आज के बाद हमारे लिए तुम मर गई और तुम्हारे लिए हम...।
प्रेम विवाह रचाने वाली सीमा के पिता राजङ्क्षसह यह कहते-कहते थाने में पुलिस वालों के सामने ही रो पड़े। पुलिस वालों ने किसी तरह उनको चुप कराया। इंटर कास्ट लव मैरिज के बाद नव दम्पति ने कोर्ट में पेश होकर लड़की के परिजनों से अपनी जान का खतरा बताया था। जिस पर कोर्ट ने सीमा की मां, पिता एवं कुछ करीबी लोगों के नाम सम्मन जारी किए थे। इनकी तामील करते हुए पुलिस ने लड़की के परिजनों को आज थाने में बुलाया था। पिता राजसिंह अपने कुछ करीबी लोगों को लेकर शिवाजी कालोनी पुलिस स्टेशन पहुंचा था। वहां पर सीमा एवं सतीश से उसका सामना हुआ तो राजसिंह अधिक देर तक अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाया।
औलाद द्वारा उठाए गए इस कदम के बाद एक पिता की बेबसी यहां साफ-साफ झलकी। राजसिंह ने आते ही सबसे पहले बेटी सीमा से पूछा कि वह खुश तो है ना। इसके बाद उसने वे शब्द कहे जिसका जिक्र हम खबर में ऊपर कर चुके हैं। राजङ्क्षसह भावनाओं पर काबू नहीं रख पाया और उसकी आंखों से आसूं छलक पड़े। साथ आए लोगों एवं पुलिस वालों ने उसे समझाबुझा कर चुप कराया। राजसिंह ने कहा कि लड़की ने ठीक नहीं किया। उसने बेटी द्वारा उठाए इस कदम को गलत मानते हुए साफ कहा कि सीमा बेटी तुमने हमें कहीं का नहीं छोड़ा। एक बार अपनी बहनों और हमारे बारे में सोचकर तो देखती, अब समाज के सामने कैसे खड़ा रह पाउंगा...। आज के बाद हमारा तुमसे कोई वास्ता नहीं और तुम भी भूल जाना कि तुम्हारे मां-बाप या भाई-बहन भी हैं। हमारे घर में तुम्हारे लिए अब कोई जगह नहीं है। तुमने अपने आप ही अपना सब-कुछ खत्म कर लिया है। भविष्य में हमसे किसी तरह की भी उम्मीद मत रखना।
इस दौरान राजसिंह के साथ आए एक व्यक्ति, जिसके नाम पर सम्मन जारी हुए हैं, की सीमा के पति सतीश के साथ हलकी-फुल्की बहस भी हो गई। उसका कहना था कि उन्होंने उसका नाम किस बिनाह पर लिखवाया है जबकि उसका उनके मामले से कोई लेना-देना ही नहीं रहा। खैर जैसे-तैसे पुलिस वालों ने उनको समझाया और कोर्ट के आदेश उन सभी को दिखाते हुए आगामी 20 अगस्त को कोर्ट में पेश होने को कहा। इसके बाद राजसिंह एवं उसके साथ आए करीबी लोग थाने से चले गए। उनके जाने के करीब आधे घंटे बाद नवदम्पति को सुरक्षा उपलब्ध कराते हुए पुलिस वाले उनको न्यू राजेंद्र कालोनी के लिए लेकर थाने से रूख्सत हो गए।
ब्याह रचाकर थाने पहुंचा प्रेमी जोड़ा
ब्राह्मण युवक ने किया पड़ौसी दलित लड़की से प्रेम विवाह
अदालत के आदेश पर नवदम्पति को मिली पुलिस सुरक्षा
देवेंद्र दांगी।
रोहतक, 5 अगस्त 2010।
समाज के तथाकथित ठेकेदारों एवं खाप पंचायतों द्वारा प्रेम के आगे खींची गई लकीर को लांघते हुए एक और प्रेमी जोड़े ने इस बात को साबित कर दिखाया है कि 21वीं सदी का युवा अपने प्यार को पाने के लिए किसी से भी टकराने की ठान चुका है। सीएम सिटी में रहने वाले एक युवक ने अपनी प्रेमिका संग घर से भागकर दिल्ली के आर्य समाज मंदिर में ब्याह रचाया है। ब्याह रचाने के बाद आज वे दोनों पति-पत्नी के रूप में थाने पहुंचे और पुलिस सुरक्षा की डिमांड की। पुलिस ने भी कोर्ट की हिदायतों को देखते हुए अविलंब नवविवाहित जोड़े की सुरक्षा का बंदोबस्त कर दिया। पुलिस की सुरक्षा मिलने से इंटर कास्ट लव मैरिज करने वाला प्रेमी युगल खुश है।
शहर की न्यू राजेंद्रा कालोनी में रहने वाले सतीश शर्मा ने समाज के बनाए नियम-कायदों की परवाह न करते हुए अपने पड़ौस में रहने वाले एक दलित परिवार की बेटी के साथ प्रेम विवाह रचाया है। शादी करके वे दोनों अपने रिश्ते को पति-पत्नी का नाम देकर काफी खुश हैं। हालांकि, उनको अपनी सुरक्षा की चिंता थी लेकिन, कोर्ट के माध्यम से वीरवार को हासिल हुई पुलिस सुरक्षा ने यह चिंता फिलहाल खत्म कर दी है। बातचीत में नवदम्पति ने कहा कि वे दोनों अपने फैसले पर अडिग़ रहेंगे। भविष्य में चाहे कैसी भी परिस्थितियां और चुनौतियां आएं, वे दोनों जीवन भर एक-दूजे का साथ नहीं छोड़ेंगे। सतीश शर्मा ने बताया कि पड़ौस में रहने वाली सीमा को पहली नजर देखते ही उसे प्यार हो गया था। हालांकि, समाज के बंधन थे मगर, उसने एक दिन हिम्मत करके सीमा को अपनी भावनाओं से अवगत करा ही दिया। चूंकि, सीमा भी उसकी तरफ आकर्षित थी लिहाजा दोनों ने एक-दूजे का होना तय कर लिया। परिवार वालों से लुक-छिप कर होने वाली मुलाकातों ने उनके प्यार को और भी मजबूत करने का काम किया।
सतीश, हालांकि महज दसवीं क्लास तक पढ़ा है मगर, ग्रैजुएशन कंपलीट कर फिलहाल एम.ए. में एडमिशन की तैयारियां कर रही सीमा को कोई गिला नहीं कि उसका पति उससे कम पढ़ा-लिखा है। सतीश कहता है कि घर से भागकर आर्य समाज मंदिर में शादी रचाने का फैसला उन दोनों का था क्योंकि वे जानते थे कि यदि इस बारे घरवालों को बताया तो वे हरगिज भी उन दोनों के रिश्ते को मंजिल हासिल नहीं होने देंगे। इसीलिए उन दोनों ने घर से भागकर शादी करना तय किया। गत 26 जुलाई को वे दोनों अपने घरवालों को बिना बताए यहां से निकल गए। एक-दूजे का हाथ थामकर वे दोनों सीधे दिल्ली के आर्य समाज मंदिर में पहुंचे और ब्याह रचा लिया। इस बात में सतीश ने अपने कुछ करीबी दोस्तों को जरूर राजदार बनाया ताकि कहीं पर दिक्कत पेश आए तो उन दोनों को मित्र मंडली का साथ मिलने में कोई दिक्कत न हो।
इधर, लड़की के पिता राजसिंह ने अपनी बेटी सीमा और पड़ौसी युवक सतीश के लापता होने पर पुलिस की शरण ली और संबंधित पुलिस चौकी न्यू अनाज मंडी में सतीश के खिलाफ शिकायत दी। पुलिस इस शिकायत पर कोई एफ.आई.आर. दर्ज करती इससे पहले ही सतीश व सीमा ने अपने अधिवक्ता संजय अहलावत के मार्फत अपनी शादी से संबंधित फोटो एवं सर्टिफिकेट्स पुलिस के पास प्रेषित करते हुए बताया कि वे दोनों बालिग हैं और अपनी मर्जी से कानूनी अधिकार रखते हुए उन्होंने शादी कर ली है लिहाजा सतीश के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं बनती। इसके बाद 4 अगस्त को दोनों रोहतक आए और अधिवक्ता के माध्यम से न्यायाधीश के सामने पेश होकर सुरक्षा की मांग रखी। अदालत ने जिला पुलिस को उन दोनों की सुरक्षा की व्यवस्था करने के आदेश देते हुए मामले में लड़की के परिजनों को अपना पक्ष रखने के लिए 20 अगस्त की तिथि मुकर्रर कर दी है।
अदालत के आदेश पर नवदम्पति को मिली पुलिस सुरक्षा
देवेंद्र दांगी।
रोहतक, 5 अगस्त 2010।
समाज के तथाकथित ठेकेदारों एवं खाप पंचायतों द्वारा प्रेम के आगे खींची गई लकीर को लांघते हुए एक और प्रेमी जोड़े ने इस बात को साबित कर दिखाया है कि 21वीं सदी का युवा अपने प्यार को पाने के लिए किसी से भी टकराने की ठान चुका है। सीएम सिटी में रहने वाले एक युवक ने अपनी प्रेमिका संग घर से भागकर दिल्ली के आर्य समाज मंदिर में ब्याह रचाया है। ब्याह रचाने के बाद आज वे दोनों पति-पत्नी के रूप में थाने पहुंचे और पुलिस सुरक्षा की डिमांड की। पुलिस ने भी कोर्ट की हिदायतों को देखते हुए अविलंब नवविवाहित जोड़े की सुरक्षा का बंदोबस्त कर दिया। पुलिस की सुरक्षा मिलने से इंटर कास्ट लव मैरिज करने वाला प्रेमी युगल खुश है।
शहर की न्यू राजेंद्रा कालोनी में रहने वाले सतीश शर्मा ने समाज के बनाए नियम-कायदों की परवाह न करते हुए अपने पड़ौस में रहने वाले एक दलित परिवार की बेटी के साथ प्रेम विवाह रचाया है। शादी करके वे दोनों अपने रिश्ते को पति-पत्नी का नाम देकर काफी खुश हैं। हालांकि, उनको अपनी सुरक्षा की चिंता थी लेकिन, कोर्ट के माध्यम से वीरवार को हासिल हुई पुलिस सुरक्षा ने यह चिंता फिलहाल खत्म कर दी है। बातचीत में नवदम्पति ने कहा कि वे दोनों अपने फैसले पर अडिग़ रहेंगे। भविष्य में चाहे कैसी भी परिस्थितियां और चुनौतियां आएं, वे दोनों जीवन भर एक-दूजे का साथ नहीं छोड़ेंगे। सतीश शर्मा ने बताया कि पड़ौस में रहने वाली सीमा को पहली नजर देखते ही उसे प्यार हो गया था। हालांकि, समाज के बंधन थे मगर, उसने एक दिन हिम्मत करके सीमा को अपनी भावनाओं से अवगत करा ही दिया। चूंकि, सीमा भी उसकी तरफ आकर्षित थी लिहाजा दोनों ने एक-दूजे का होना तय कर लिया। परिवार वालों से लुक-छिप कर होने वाली मुलाकातों ने उनके प्यार को और भी मजबूत करने का काम किया।
सतीश, हालांकि महज दसवीं क्लास तक पढ़ा है मगर, ग्रैजुएशन कंपलीट कर फिलहाल एम.ए. में एडमिशन की तैयारियां कर रही सीमा को कोई गिला नहीं कि उसका पति उससे कम पढ़ा-लिखा है। सतीश कहता है कि घर से भागकर आर्य समाज मंदिर में शादी रचाने का फैसला उन दोनों का था क्योंकि वे जानते थे कि यदि इस बारे घरवालों को बताया तो वे हरगिज भी उन दोनों के रिश्ते को मंजिल हासिल नहीं होने देंगे। इसीलिए उन दोनों ने घर से भागकर शादी करना तय किया। गत 26 जुलाई को वे दोनों अपने घरवालों को बिना बताए यहां से निकल गए। एक-दूजे का हाथ थामकर वे दोनों सीधे दिल्ली के आर्य समाज मंदिर में पहुंचे और ब्याह रचा लिया। इस बात में सतीश ने अपने कुछ करीबी दोस्तों को जरूर राजदार बनाया ताकि कहीं पर दिक्कत पेश आए तो उन दोनों को मित्र मंडली का साथ मिलने में कोई दिक्कत न हो।
इधर, लड़की के पिता राजसिंह ने अपनी बेटी सीमा और पड़ौसी युवक सतीश के लापता होने पर पुलिस की शरण ली और संबंधित पुलिस चौकी न्यू अनाज मंडी में सतीश के खिलाफ शिकायत दी। पुलिस इस शिकायत पर कोई एफ.आई.आर. दर्ज करती इससे पहले ही सतीश व सीमा ने अपने अधिवक्ता संजय अहलावत के मार्फत अपनी शादी से संबंधित फोटो एवं सर्टिफिकेट्स पुलिस के पास प्रेषित करते हुए बताया कि वे दोनों बालिग हैं और अपनी मर्जी से कानूनी अधिकार रखते हुए उन्होंने शादी कर ली है लिहाजा सतीश के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं बनती। इसके बाद 4 अगस्त को दोनों रोहतक आए और अधिवक्ता के माध्यम से न्यायाधीश के सामने पेश होकर सुरक्षा की मांग रखी। अदालत ने जिला पुलिस को उन दोनों की सुरक्षा की व्यवस्था करने के आदेश देते हुए मामले में लड़की के परिजनों को अपना पक्ष रखने के लिए 20 अगस्त की तिथि मुकर्रर कर दी है।
रविवार, जुलाई 25, 2010
मतभेदों की खाई ने बहाया अपनों का खून
- वारदात से सहमे हुए हैं ईस्माइला के ग्रामीण
देवेंद्र दांगी।
रोहतक/सांपला, 25 जुलाई । रविवार की सुबह गांव ईस्माइला 11बी में सरेआम अंजाम दी गई वारदात को पिता-पुत्र के बीच उभरे मतभेदों की गहरी खाई का दुष्परिणाम कहा जाए तो शायद कुछ भी गलत नहीं होगा। ग्रामीणों से लेकर पुलिस तक सभी लोग ऐसा मान रहे हैं कि यह बाप-बेटे के बीच गहरे हो चुके मतभेदों के चलते अंजाम दी गई वारदात है। किसी ग्रामीण एवं पारिवारिक सदस्य ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि बाप-बेटे के बीच उपजे मतभेद एक रोज दिल को दहला देने वाली रक्त रंजित वारदात के जन्मदाता साबित होंगे।
इस खूनी वारदात की गहराई में जाकर तहकीकात करें तो मालूम होता है कि यह कोई त्वरित उपजे मतभेद या रंजिश के चलते अंजाम दी गई वारदात नहीं बल्कि सोची-समझी साजिश थी, जिसने देवर-भाभी को मौत के आगोश में समाने पर मजबूर कर डाला। ग्रामीणों के मुताबिक बेटे के हाथों गोलियां खाकर मौत के मुंह में समाए राजेंद्र की पत्नी फूलवती की आज से करीब अट्ठारह बरस पहले मौत हो गई थी। हालांकि, तब उसकी मौत को लेकर कुछ सवाल फिजां में तैरने लगे थे, लेकिन मामला पुलिस तक नहीं पहुंचा था।
दबी जुबान में ग्रामीण बताते हैं कि पत्नी की मौत के बाद राजेंद्र ने अपने बेटों जसबीर उर्फ जस्सा एवं मनजीत की परवरिश की कोई खास परवाह नहीं की। उनको छोड़कर वह अपने बड़े भाई रामकिशन व उसकी पत्नी शकुंतला के साथ रहने लगा। ऐसे में दोनों बच्चों की देखभाल एवं पालन-पोषण का जिम्मा उसके छोटे भाई तेजा की पत्नी कमलेश ने उठाया। कमलेश ने दोनों बच्चों को मां की कमी नहीं खलने दी। वक्त का पहिया घूमता रहा और दोनों बच्चे बड़े होते गए। इसी बीच राजेंद्र ने गांव में ही किरयाणे की दुकान बना ली मगर, जसबीर व मनजीत अपने पिता के प्यार से लगभग महरूम ही रहे। इसी बीच अपने भाई-भाभी के साथ रह रहे राजेंद्र के अपने बच्चों के प्रति आचरण को लेकर कई बार वाद-विवाद की स्थिति भी उपजी लेकिन मामला विस्फोटक होने से बचा रहा।
चीकू बनी वारदात की चश्मदीद
रोहतक। दोहरे हत्याकांड की चश्मदीद बनी अपने पिता एवं ताई के मुख्य हत्यारोपी जसबीर उर्फ जस्सा की चचेरी बहन चीकू। वह चीकू ही है जिसने पूरे मंजर को अपनी सहमी हुई आंखों से देखा है। पुलिस के मुताबिक जिस वक्त राजेंद्र पर गोलियां बरसाई गई शकुंतला की बेटी चीकू अपने चाचा राजेंद्र को दुकान पर चाय देने के लिए आई हुई थी। राजेंद्र को गोलियां मारकर भागे हत्यारोपियों का उसने पीछा भी किया मगर वे हाथ नहीं आ सके और आगे जाकर उन्होंने चीकू की मां शकुंतला को भी मौत की नींद सुला दिया। बेबस, चीकू अपनी आंखों के सामने अपनों के हाथों अपनों का खून होते देखती रही मगर उनके बचाव में कुछ नहीं कर सकी।
हत्यारों को तलाशने के लिए 2 टीमें गठित
रोहतक। रविवार की सुबह ईस्माइला के बाशिंदों के लिए मनहूस साबित हुई। शांत फिजां में गोलियों के धमाके गूंजे तो ग्रामीण भी एकदम से सदमे में आ गए। तीन युवक अपनो का कत्ल कर सरेआम खून की होली खेलकर बाइक पर सवार होकर मौका-ए-वारदात से निकल गए और किसी ग्रामीण ने उनको रोकने की जहमत नहीं उठाई। बहरहाल, उनके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर सांपला पुलिस ने जोरशोर से तलाशी अभियान छेड़ दिया है और पुलिस कप्तान उनकी जल्द गिरफ्तारी की बात भी कह रहे हैं। इसी सिलसिले में पुलिस की दो स्पेशल टीमों का गठन भी किया गया है।
सांपला पुलिस थाने के स्टेशन हाउस ऑफिसर राजबीर सिंह ने बताया कि एक टीम का नेतृत्व वे स्वयं कर रहे हैं जबकि दूसरी टीम की अगुवाई सब इंस्पेक्टर श्रीभगवान को सौंपी गई है। पीडि़त परिवार से मिली इनपुट के सहारे मामले की इन्कवायरी को आगे बढ़ाते हुए दोनों ही पुलिस टीमें हत्यारोपियों के छिपने के संभावित ठिकानों पर छापामारी कर रहे हैं मगर, देर शाम तक पुलिस के हाथ कामयाबी नहीं लग पाई थी। इसी बीच पुलिस सूत्रों को कुछ ऐसी भी सूचनाएं मिली हैं कि अपने पिता एवं ताई शकुंतला की हत्या का आरोपी जसबीर उर्फ जस्सा फिलहाल नजदीक की किसी रिश्तेदारी या फिर अपने किसी खास दोस्त के यहां पनाह लिए हुए हो सकता है।
इन्हीं सूचनाओं के आधार पर पुलिस की टीमें उनके छिपने के ऐसे तमाम संभावित ठिकानों को निशाने पर लेते हुए देर शाम तक छानबीन में जुटी हुई थी। हालांकि, प्रारंभिक तौर पर की गई छापामारी में पुलिस को जसबीर एवं उसके दोस्तों का कोई अता-पता नहीं मिल सका है मगर एसएचओ राजबीर कहते हैं कि पुलिस तेजी से अपना काम कर रही है और हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने में अधिक वक्त नहीं लगाएगी। पुलिस की हर संभव कौशिश है कि तीनों हत्यारोपी जल्द से जल्द सलाखों के पीछे पहुंच जाएं।
देवेंद्र दांगी।
रोहतक/सांपला, 25 जुलाई । रविवार की सुबह गांव ईस्माइला 11बी में सरेआम अंजाम दी गई वारदात को पिता-पुत्र के बीच उभरे मतभेदों की गहरी खाई का दुष्परिणाम कहा जाए तो शायद कुछ भी गलत नहीं होगा। ग्रामीणों से लेकर पुलिस तक सभी लोग ऐसा मान रहे हैं कि यह बाप-बेटे के बीच गहरे हो चुके मतभेदों के चलते अंजाम दी गई वारदात है। किसी ग्रामीण एवं पारिवारिक सदस्य ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि बाप-बेटे के बीच उपजे मतभेद एक रोज दिल को दहला देने वाली रक्त रंजित वारदात के जन्मदाता साबित होंगे।
इस खूनी वारदात की गहराई में जाकर तहकीकात करें तो मालूम होता है कि यह कोई त्वरित उपजे मतभेद या रंजिश के चलते अंजाम दी गई वारदात नहीं बल्कि सोची-समझी साजिश थी, जिसने देवर-भाभी को मौत के आगोश में समाने पर मजबूर कर डाला। ग्रामीणों के मुताबिक बेटे के हाथों गोलियां खाकर मौत के मुंह में समाए राजेंद्र की पत्नी फूलवती की आज से करीब अट्ठारह बरस पहले मौत हो गई थी। हालांकि, तब उसकी मौत को लेकर कुछ सवाल फिजां में तैरने लगे थे, लेकिन मामला पुलिस तक नहीं पहुंचा था।
दबी जुबान में ग्रामीण बताते हैं कि पत्नी की मौत के बाद राजेंद्र ने अपने बेटों जसबीर उर्फ जस्सा एवं मनजीत की परवरिश की कोई खास परवाह नहीं की। उनको छोड़कर वह अपने बड़े भाई रामकिशन व उसकी पत्नी शकुंतला के साथ रहने लगा। ऐसे में दोनों बच्चों की देखभाल एवं पालन-पोषण का जिम्मा उसके छोटे भाई तेजा की पत्नी कमलेश ने उठाया। कमलेश ने दोनों बच्चों को मां की कमी नहीं खलने दी। वक्त का पहिया घूमता रहा और दोनों बच्चे बड़े होते गए। इसी बीच राजेंद्र ने गांव में ही किरयाणे की दुकान बना ली मगर, जसबीर व मनजीत अपने पिता के प्यार से लगभग महरूम ही रहे। इसी बीच अपने भाई-भाभी के साथ रह रहे राजेंद्र के अपने बच्चों के प्रति आचरण को लेकर कई बार वाद-विवाद की स्थिति भी उपजी लेकिन मामला विस्फोटक होने से बचा रहा।
चीकू बनी वारदात की चश्मदीद
रोहतक। दोहरे हत्याकांड की चश्मदीद बनी अपने पिता एवं ताई के मुख्य हत्यारोपी जसबीर उर्फ जस्सा की चचेरी बहन चीकू। वह चीकू ही है जिसने पूरे मंजर को अपनी सहमी हुई आंखों से देखा है। पुलिस के मुताबिक जिस वक्त राजेंद्र पर गोलियां बरसाई गई शकुंतला की बेटी चीकू अपने चाचा राजेंद्र को दुकान पर चाय देने के लिए आई हुई थी। राजेंद्र को गोलियां मारकर भागे हत्यारोपियों का उसने पीछा भी किया मगर वे हाथ नहीं आ सके और आगे जाकर उन्होंने चीकू की मां शकुंतला को भी मौत की नींद सुला दिया। बेबस, चीकू अपनी आंखों के सामने अपनों के हाथों अपनों का खून होते देखती रही मगर उनके बचाव में कुछ नहीं कर सकी।
हत्यारों को तलाशने के लिए 2 टीमें गठित
रोहतक। रविवार की सुबह ईस्माइला के बाशिंदों के लिए मनहूस साबित हुई। शांत फिजां में गोलियों के धमाके गूंजे तो ग्रामीण भी एकदम से सदमे में आ गए। तीन युवक अपनो का कत्ल कर सरेआम खून की होली खेलकर बाइक पर सवार होकर मौका-ए-वारदात से निकल गए और किसी ग्रामीण ने उनको रोकने की जहमत नहीं उठाई। बहरहाल, उनके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर सांपला पुलिस ने जोरशोर से तलाशी अभियान छेड़ दिया है और पुलिस कप्तान उनकी जल्द गिरफ्तारी की बात भी कह रहे हैं। इसी सिलसिले में पुलिस की दो स्पेशल टीमों का गठन भी किया गया है।
सांपला पुलिस थाने के स्टेशन हाउस ऑफिसर राजबीर सिंह ने बताया कि एक टीम का नेतृत्व वे स्वयं कर रहे हैं जबकि दूसरी टीम की अगुवाई सब इंस्पेक्टर श्रीभगवान को सौंपी गई है। पीडि़त परिवार से मिली इनपुट के सहारे मामले की इन्कवायरी को आगे बढ़ाते हुए दोनों ही पुलिस टीमें हत्यारोपियों के छिपने के संभावित ठिकानों पर छापामारी कर रहे हैं मगर, देर शाम तक पुलिस के हाथ कामयाबी नहीं लग पाई थी। इसी बीच पुलिस सूत्रों को कुछ ऐसी भी सूचनाएं मिली हैं कि अपने पिता एवं ताई शकुंतला की हत्या का आरोपी जसबीर उर्फ जस्सा फिलहाल नजदीक की किसी रिश्तेदारी या फिर अपने किसी खास दोस्त के यहां पनाह लिए हुए हो सकता है।
इन्हीं सूचनाओं के आधार पर पुलिस की टीमें उनके छिपने के ऐसे तमाम संभावित ठिकानों को निशाने पर लेते हुए देर शाम तक छानबीन में जुटी हुई थी। हालांकि, प्रारंभिक तौर पर की गई छापामारी में पुलिस को जसबीर एवं उसके दोस्तों का कोई अता-पता नहीं मिल सका है मगर एसएचओ राजबीर कहते हैं कि पुलिस तेजी से अपना काम कर रही है और हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने में अधिक वक्त नहीं लगाएगी। पुलिस की हर संभव कौशिश है कि तीनों हत्यारोपी जल्द से जल्द सलाखों के पीछे पहुंच जाएं।
देवर-भाभी को किया गोलियों से छलनी
- बेटे ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर अंजाम दी वारदात
- पिता की मनमानी हरकतों से आजीज था जसबीर जस्सा
देवेंद्र दांगी।
रोहतक/सांपला, 25 जुलाई। सांपला क्षेत्र के गांव ईस्माइला 11 बी. में एक युवक ने अपने दो अन्य दोस्तों के साथ मिलकर अपने पिता एवं ताई को गोलियों से छलनी कर मौत की नींद सुला दिया। प्रारंभिक छानबीन में पुलिस इस वारदात को अवैध संबंधों की शंका के चलते बाप-बेटे के बीच उभरे मतभेदों से जोड़कर देख रही है। सांपला पुलिस ने हत्यारोपी बेटे एवं उसके दो अन्य दोस्तों के खिलाफ मामला दर्ज कर तहकीकात शुरू कर दी है। रविवार को दोपहर बाद दोनों शवों का पीजीआई में पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस ने उन्हें वारिसों के सुपुर्द कर दिया और शाम को गांव में उनका अंतिम संस्कार हुआ। समाचार लिखे जाने तक हत्यारों की तलाश की जा रही थी लेकिन पुलिस के हाथ कामयाबी नहीं लग पाई थी। पुलिस कप्तान बी. सतीश बालन ने कहा कि पुलिस तेजी से मामले की छानबीन करते हुए हत्यारोपियों की तलाश में छापामारी कर रही है और उनको जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
पुलिस सूत्रों ने बताया कि गांव ईस्माइला में रहने वाले 52 वर्षीय राजेंद्र उर्फ राजा एवं उसकी बड़ी भाभी शकुंतला पत्नी रामकिशन की आज तड़के गोलियां मार कर जघन्य हत्या कर दी गई। वारदात सुबह करीब छह बजे अंजाम दी गई। उस वक्त राजेंद्र गांव में बनाई अपनी किरयाने की दुकान पर कुछ समय पहले ही आकर बैठा था। बताया गया है कि उसका बेटा जसबीर उर्फ 'ास्सा पुत्र राजेंद्र मोटरसाइकिल पर अपने दो दोस्तों विकास व विक्की के साथ आया। तीनों दोस्त दनदनाते हुए दुकान पर पहुंचे और राजेंद्र उर्फ राजा की और पिस्तौल तानकर गोलियां दाग दी।
हालांकि, राजेंद्र ने भागकर अपनी जान बचाने का प्रयास किया मगर हमलावर पूरी तैयारी में आए थे। उन्होंने राजेंद्र का मौके पर ही काम तमाम कर डाला। इसके बाद उपरोक्त तीनों मोटरसाइकिल पर बैठकर उस ओर चले गए जहां पर राजेंद्र की बड़ी भाभी शकुंतला भैंसों को बांधने गई थी। उन्होंने शकुंतला को देखते ही गोलियों की बौछार कर डाली और उसे भी मौके पर ही ढेर कर आराम से बाइक पर बैठकर फरार हो गए। बाद में ग्रामीणों की सूचना पर सांपला पुलिस की टीम मौके पर पहुंची। एफ.एस.एल. एक्सपर्ट्स की टीम को भी मौका-मुआयना करने के लिए बुलाया गया और पुलिस के आला अधिकारियों ने भी घटनास्थल का जायजा लिया।
मामले को लेकर रोहतक के प्रवर पुलिस अधीक्षक बी. सतीश बालन ने कहा कि हत्यारोपियों की तलाश तेजी से की जा रही है और उनको जल्द काबू कर सलाखों के पीछे डाला जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रारंभिक छानबीन में मामला मतभेदों से उपजी रंजिश से जुड़ा नजर आ रहा है और इसकी बारीकी से तहकीकात की जा रही है। इससे अधिक फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता।
- पिता की मनमानी हरकतों से आजीज था जसबीर जस्सा
देवेंद्र दांगी।
रोहतक/सांपला, 25 जुलाई। सांपला क्षेत्र के गांव ईस्माइला 11 बी. में एक युवक ने अपने दो अन्य दोस्तों के साथ मिलकर अपने पिता एवं ताई को गोलियों से छलनी कर मौत की नींद सुला दिया। प्रारंभिक छानबीन में पुलिस इस वारदात को अवैध संबंधों की शंका के चलते बाप-बेटे के बीच उभरे मतभेदों से जोड़कर देख रही है। सांपला पुलिस ने हत्यारोपी बेटे एवं उसके दो अन्य दोस्तों के खिलाफ मामला दर्ज कर तहकीकात शुरू कर दी है। रविवार को दोपहर बाद दोनों शवों का पीजीआई में पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस ने उन्हें वारिसों के सुपुर्द कर दिया और शाम को गांव में उनका अंतिम संस्कार हुआ। समाचार लिखे जाने तक हत्यारों की तलाश की जा रही थी लेकिन पुलिस के हाथ कामयाबी नहीं लग पाई थी। पुलिस कप्तान बी. सतीश बालन ने कहा कि पुलिस तेजी से मामले की छानबीन करते हुए हत्यारोपियों की तलाश में छापामारी कर रही है और उनको जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
पुलिस सूत्रों ने बताया कि गांव ईस्माइला में रहने वाले 52 वर्षीय राजेंद्र उर्फ राजा एवं उसकी बड़ी भाभी शकुंतला पत्नी रामकिशन की आज तड़के गोलियां मार कर जघन्य हत्या कर दी गई। वारदात सुबह करीब छह बजे अंजाम दी गई। उस वक्त राजेंद्र गांव में बनाई अपनी किरयाने की दुकान पर कुछ समय पहले ही आकर बैठा था। बताया गया है कि उसका बेटा जसबीर उर्फ 'ास्सा पुत्र राजेंद्र मोटरसाइकिल पर अपने दो दोस्तों विकास व विक्की के साथ आया। तीनों दोस्त दनदनाते हुए दुकान पर पहुंचे और राजेंद्र उर्फ राजा की और पिस्तौल तानकर गोलियां दाग दी।
हालांकि, राजेंद्र ने भागकर अपनी जान बचाने का प्रयास किया मगर हमलावर पूरी तैयारी में आए थे। उन्होंने राजेंद्र का मौके पर ही काम तमाम कर डाला। इसके बाद उपरोक्त तीनों मोटरसाइकिल पर बैठकर उस ओर चले गए जहां पर राजेंद्र की बड़ी भाभी शकुंतला भैंसों को बांधने गई थी। उन्होंने शकुंतला को देखते ही गोलियों की बौछार कर डाली और उसे भी मौके पर ही ढेर कर आराम से बाइक पर बैठकर फरार हो गए। बाद में ग्रामीणों की सूचना पर सांपला पुलिस की टीम मौके पर पहुंची। एफ.एस.एल. एक्सपर्ट्स की टीम को भी मौका-मुआयना करने के लिए बुलाया गया और पुलिस के आला अधिकारियों ने भी घटनास्थल का जायजा लिया।
मामले को लेकर रोहतक के प्रवर पुलिस अधीक्षक बी. सतीश बालन ने कहा कि हत्यारोपियों की तलाश तेजी से की जा रही है और उनको जल्द काबू कर सलाखों के पीछे डाला जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रारंभिक छानबीन में मामला मतभेदों से उपजी रंजिश से जुड़ा नजर आ रहा है और इसकी बारीकी से तहकीकात की जा रही है। इससे अधिक फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता।
सोमवार, जून 28, 2010
इंसाफ मांगने वाली के साथ हर कदम पर नाइंसाफी
आरोपी पुलिस वालों को गिरफ्तार करने में भी पुलिस ने नहीं दिखाई गंभीरता
मुख्यमंत्री तक फरियाद पहुंचने के बाद भी सुस्ती का शिकार ही रही पुलिस
देवेंद्र दांगी
रोहतक, 28 जून ।
आईने में अपनी सूरत भी न पहचानी गई।
आंसूओं ने आंख का हर अक्स धुंधला कर दिया।।
एक मशहूर शायर की कलम से निकली इन दो लाइनों में कितना मर्म छिपा है इसे इंसाफ की उम्मीद में जिंदगी से हार चुकी सविता के परिवार से बेहतर शायद ही कोई महसूस कर पाए। उस अबला के साथ जो कुछ भी हुआ उसे सुनकर ही किसी भी इंसान के शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती है। मासूम के साथ गुजरी कड़वी हकीकत की तह में जाकर पड़ताल करें तो लगता है जैसे आज भी इंसाफ की राह में हजार नहीं बल्कि लाखों रोड़े हैं।
हालांकि, मासूम बेटी को खो चुके सुभाष हुड्डा खुद को पूरी तरह से बिखरा हुआ महसूस करते हैं मगर, उम्मीद का दामन उन्होंने अभी भी नहीं छोड़ा है। बेटी की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों का जिक्र आते ही सुभाष के हाव-भाव बदल जाते हैं। उनके लिए कड़ी से कड़ी सजा के लिए सुभाष बड़ी से बड़ी अदालत में जाने को तैयार है और चाहता है कि लोगों के इंसाफ की लड़ाई लडऩे वाला मीडिया जगत भी उसके मर्म को समझते हुए पूरा साथ दे ताकि भविष्य में किसी सविता या सरिता के साथ नाइंसाफी की गुंजाईश कम हो सके।
सुभाष की सुनें तो एक महीना पहले तक सब-कुछ ठीक था। वह 23 मई का मनहूस दिन था, जहां से इस परिवार के उलटे दिनों की शुरूआत हुई। इस तारीख को सविता को उसका दोस्त रोहित चावला एवं पुलिस का मुखबिर कुलदीप शर्मा अपने तीन पुलिस वाले दोस्तों के साथ जबरदस्ती जिप्सी में बिठाकर पानीपत के चांदनीबाग पुलिस थाने ले गए। वहां पर उपरोक्त सभी ने शारीरिक शोषण करना चाहा मगर बेचारी सविता किसी तरह अपनी आबरू बचाकर थाने से निकल आई। इसके बाद धीरे-धीरे सब-कुछ बदलता चला गया। मोबाइल फोन पर पुलिस वालों एवं रोहित तथा मुखबिर कुलदीप शर्मा ने उसे यौन संबंधों के लिए मजबूर करना चाहा। सविता अपना दर्द किसी को नहीं बता पाई और आखिरकार यातनाओं से आजीज आई सविता ने 31 मई को अपना बदन आग के हवाले कर दिया।पानीपत के प्राइवेट हास्पिटल से उसे पीजीआई रोहतक रेफर कर दिया गया जहां पर 5 जून को न्यायिक अधिकारी ने सविता की स्टेटमेंट रिकार्ड की। सविता ने कड़वी सच्चाई यान करते हुए वर्दी की आड़ में छिपे गुंडों की करतूत भी बताई। मामला तूल पकड़ता नजर आया और हरियाणा जनहित कांग्रेस सुप्रीमो कुलदीप बिश्नौई भी सविता से मिलने 9 जून को पीजीआई पहुंचे और पीडि़त परिवार को हर संभव मदद एवं इंसाफ की लड़ाई में साथ देने का भरोसा दिलाया। इनैलो युवा के प्रदेश उपाध्यक्ष जितेंद्र बल्हारा ने भी पीडि़तों को इंसाफ की लड़ाई में साथ का वचन दिया। मीडिया की सुर्खियां बने मामले से पुलिस महकमे के आला अधिकारियों की नींद टूटी और 10 जून को रोहित चावला को अरेस्ट किया गया। पुलिस की साख बचाने को अधिकारियों ने पानीपत के चांदनीबाग पुलिस थाने के स्टाफ की शिनाख्त परेड भी सविता से पीजीआई में कराई। इसमें सविता ने ण्क वहशी पुलिस वाले की पहचान कर बताया कि वह भी बाकी आरोपियों के साथ उसे तंग कर रहा था। जिसकी शिनाख्त सविता ने की वह कांस्टेबल राधेश्याम बेल्ट नंबर 362 था। अगले रोज यानी 11 जून को रोहित चावला को पुलिस ने कोर्ट में पेश किया मगर आश्चर्य की उसका रिमांड नहीं लिया गया। अदालत ने रोहित को 'युडिशियल कस्टडी भेज दिया लेकिन आश्चर्य इस बात का भी रहा कि शिनाख्त परेड में सरेआम पहचाने गए कांस्टेबल राधेश्याम शर्मा की खाल बचाने के लिए अधिकारियों ने पूरा जोर लगा डाला। नहीं तो और क्या कारण हो सकते थे कि बेहद गंभीर आरोपों में घिरे होने के बावजूद राधेश्याम को गिरफ्तार नहीं किया गया। दूसरी ओर पीजीआई में मौत से लड़ रही सविता को उसका पिता सुभाष दिलासा दिला रहा था कि बेटी सब-कुछ ठीक हो जाएगा और भगवान उनके साथ इंसाफ करेगा मगर पुलिस महकमे के रवैए को देखते हुए धीरे-धीरे सुभाष की उम्मीद भी टूटती नजर आई। इस सब के बीच 12 जून को सविता का पिता सुभाष सीएम के दरबार में पहुंचा और न्याय की गुहार लगाई। सी.एम से मिले आश्वासन से फिर कुछ उ मीद बंधी लेकिन मामले में कोई खास प्रगति नहीं हुई और आखिरकार सविता का जिंदगी के लिए मौत से लडऩे का ज'बा भी जवाब दे गया और रविवार को वह मौत के मुंह में समा गई।
मुख्यमंत्री तक फरियाद पहुंचने के बाद भी सुस्ती का शिकार ही रही पुलिस
देवेंद्र दांगी
रोहतक, 28 जून ।
आईने में अपनी सूरत भी न पहचानी गई।
आंसूओं ने आंख का हर अक्स धुंधला कर दिया।।
एक मशहूर शायर की कलम से निकली इन दो लाइनों में कितना मर्म छिपा है इसे इंसाफ की उम्मीद में जिंदगी से हार चुकी सविता के परिवार से बेहतर शायद ही कोई महसूस कर पाए। उस अबला के साथ जो कुछ भी हुआ उसे सुनकर ही किसी भी इंसान के शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती है। मासूम के साथ गुजरी कड़वी हकीकत की तह में जाकर पड़ताल करें तो लगता है जैसे आज भी इंसाफ की राह में हजार नहीं बल्कि लाखों रोड़े हैं।
हालांकि, मासूम बेटी को खो चुके सुभाष हुड्डा खुद को पूरी तरह से बिखरा हुआ महसूस करते हैं मगर, उम्मीद का दामन उन्होंने अभी भी नहीं छोड़ा है। बेटी की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों का जिक्र आते ही सुभाष के हाव-भाव बदल जाते हैं। उनके लिए कड़ी से कड़ी सजा के लिए सुभाष बड़ी से बड़ी अदालत में जाने को तैयार है और चाहता है कि लोगों के इंसाफ की लड़ाई लडऩे वाला मीडिया जगत भी उसके मर्म को समझते हुए पूरा साथ दे ताकि भविष्य में किसी सविता या सरिता के साथ नाइंसाफी की गुंजाईश कम हो सके।
सुभाष की सुनें तो एक महीना पहले तक सब-कुछ ठीक था। वह 23 मई का मनहूस दिन था, जहां से इस परिवार के उलटे दिनों की शुरूआत हुई। इस तारीख को सविता को उसका दोस्त रोहित चावला एवं पुलिस का मुखबिर कुलदीप शर्मा अपने तीन पुलिस वाले दोस्तों के साथ जबरदस्ती जिप्सी में बिठाकर पानीपत के चांदनीबाग पुलिस थाने ले गए। वहां पर उपरोक्त सभी ने शारीरिक शोषण करना चाहा मगर बेचारी सविता किसी तरह अपनी आबरू बचाकर थाने से निकल आई। इसके बाद धीरे-धीरे सब-कुछ बदलता चला गया। मोबाइल फोन पर पुलिस वालों एवं रोहित तथा मुखबिर कुलदीप शर्मा ने उसे यौन संबंधों के लिए मजबूर करना चाहा। सविता अपना दर्द किसी को नहीं बता पाई और आखिरकार यातनाओं से आजीज आई सविता ने 31 मई को अपना बदन आग के हवाले कर दिया।पानीपत के प्राइवेट हास्पिटल से उसे पीजीआई रोहतक रेफर कर दिया गया जहां पर 5 जून को न्यायिक अधिकारी ने सविता की स्टेटमेंट रिकार्ड की। सविता ने कड़वी सच्चाई यान करते हुए वर्दी की आड़ में छिपे गुंडों की करतूत भी बताई। मामला तूल पकड़ता नजर आया और हरियाणा जनहित कांग्रेस सुप्रीमो कुलदीप बिश्नौई भी सविता से मिलने 9 जून को पीजीआई पहुंचे और पीडि़त परिवार को हर संभव मदद एवं इंसाफ की लड़ाई में साथ देने का भरोसा दिलाया। इनैलो युवा के प्रदेश उपाध्यक्ष जितेंद्र बल्हारा ने भी पीडि़तों को इंसाफ की लड़ाई में साथ का वचन दिया। मीडिया की सुर्खियां बने मामले से पुलिस महकमे के आला अधिकारियों की नींद टूटी और 10 जून को रोहित चावला को अरेस्ट किया गया। पुलिस की साख बचाने को अधिकारियों ने पानीपत के चांदनीबाग पुलिस थाने के स्टाफ की शिनाख्त परेड भी सविता से पीजीआई में कराई। इसमें सविता ने ण्क वहशी पुलिस वाले की पहचान कर बताया कि वह भी बाकी आरोपियों के साथ उसे तंग कर रहा था। जिसकी शिनाख्त सविता ने की वह कांस्टेबल राधेश्याम बेल्ट नंबर 362 था। अगले रोज यानी 11 जून को रोहित चावला को पुलिस ने कोर्ट में पेश किया मगर आश्चर्य की उसका रिमांड नहीं लिया गया। अदालत ने रोहित को 'युडिशियल कस्टडी भेज दिया लेकिन आश्चर्य इस बात का भी रहा कि शिनाख्त परेड में सरेआम पहचाने गए कांस्टेबल राधेश्याम शर्मा की खाल बचाने के लिए अधिकारियों ने पूरा जोर लगा डाला। नहीं तो और क्या कारण हो सकते थे कि बेहद गंभीर आरोपों में घिरे होने के बावजूद राधेश्याम को गिरफ्तार नहीं किया गया। दूसरी ओर पीजीआई में मौत से लड़ रही सविता को उसका पिता सुभाष दिलासा दिला रहा था कि बेटी सब-कुछ ठीक हो जाएगा और भगवान उनके साथ इंसाफ करेगा मगर पुलिस महकमे के रवैए को देखते हुए धीरे-धीरे सुभाष की उम्मीद भी टूटती नजर आई। इस सब के बीच 12 जून को सविता का पिता सुभाष सीएम के दरबार में पहुंचा और न्याय की गुहार लगाई। सी.एम से मिले आश्वासन से फिर कुछ उ मीद बंधी लेकिन मामले में कोई खास प्रगति नहीं हुई और आखिरकार सविता का जिंदगी के लिए मौत से लडऩे का ज'बा भी जवाब दे गया और रविवार को वह मौत के मुंह में समा गई।
...इंसाफ की जंग में हार गई जिंदगी

देवेंद्र दांगी
रोहतक, 27 जून : आखिरकार वही हुआ जिसका डर था। इंसाफ के लिए करीब एक महीने से मौत से जंग लड़ रही जिन्दगी आज हार गई। सविता की मौत ने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिये हैं। सबसे बड़ा सवाल तो ये कि क्या सरिता रेप सुसाइड मामले के बाद भी हरियाणा पुलिस ने कोई सबक नहीं सीखा है ? क्या बे-लगाम हो चुके कानून के इन तथाकथित रक्षकों की गैर कानूनी हरकतों पर लगाम कसने वाला कोई नहीं रहा ? कभी सरिता तो कभी सविता, आखिर इन अबला नारियों की आबरू पर हाथ डालने वाले गुंडे पुलिस वालों की हरकतें बंद हों तो कैसे ?
पानीपत के विकास नगर में रहने वाली सविता पुत्री सुभाष को बुरी तरह से जलने के उपरांत 23 दिन पहले पीजीआई में दाखिल कराया गया था। इससे पहले उसे पानीपत के एक प्राइवेट हास्पिटल में एडमिट कराया गया मगर चूंकि सविता का बदन तकरीबन अस्सी फीसदी तक झुलस चुका था, लिहाजा डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिये और सविता पीजीआई रेफर कर दी गई। इसके बाद से उसका पीजीआई के वार्ड 19 में उपचार चल रहा था, जो आज चल बसी। यूं तो तेज रफ्तार से भाग रहे हमारे समाज में आज किसी नारी का जलने के बाद अस्पताल पहुंचना आम बात हो चली है मगर सविता जिन हालात से गुजरकर यहां तक पहुंची वे किसी भी पत्थर दिल इनसान के भी दिल को दहला देने वाले रहे।
इस दर्दनाक कहानी की शुरूआत दरअसल करीब एक महीना पहले पानीपत से हुई थी। एक रोज सविता को पुलिस का एक मुखबिर एवं उसका दोस्त पुलिस की जिप्सी में बैठाकर थाने ले गये। इस काम में मुखबिर के दोस्त कुछ पुलिस वालों का भी पूरा-पूरा रोल रहा। थाने ले जाकर उसके साथ न केवल अभद्रता की गई बल्कि नारी के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली हरकतें भी हुई। उस वक्त तो सविता किसी तरह से हाथ-पैर जोडक़र उनके चंगुल से आजाद हो गई मगर वह चैन से अपने घर भी नहीं रह पाई। क्योंकि, सविता को अब वे पुलिस वाले तंग करने लगे थे। उनकी गंदी नजर उस अबला की आबरू पर थी और उन्होंने इसे जाहिर करने में भी कोई शरम महसूस नहीं की। सविता के सामने उसके भविष्य का वास्ता देते हुए बेहद ही आपिजनक शर्त रखी गई, जिसे पूरा करने की बजाय उस अबला ने खुद को आग के हवाले करना बेहतर सबझा। हालांकि, मामला जब मीडिया की सुर्खियां बनता नजर आया तो आला अधिकारियों ने आरोपी पुलिस वालों की शिनाख्त परेड का बंदोबस्त भी किया। पीजीआई में उपचाराधीन सविता के सामने वे दो चेहरे भी आए और वर्दी वालों के वेश में कानून के रक्षक बने भक्षकों की पहचान भी हुई मगर इसका नतीजा क्या निकला ? सविता और उसके पिता सुभाष हुड्डï को आस बंधी थी कि शिनाख्त परेड के बाद शायद दोषी पुलिस वालों को कुछ सजा मिलेगी मगर महकमे के बिगड़े तंत्र में सब कुछ उलझकर रह गया। इधर, इंसाफ की आस दिल में जलाए सविता मौत से जंग लड़ रही थी और उधर आरोपी पुलिस वाले खुले घूम रहे थे। आखिरकार एक अबला और कितना अपमान सहन करती। उपचार के दौरान पिछले कुछ दिन से सविता का स्वास्थ्य लगातार गिरता रहा और आखिरकार आज इंसाफ की आस लिए वह स्वर्ग सिधार गई। सविता के पिता सुभाष पिछले एक माह के घटनाक्रम में बुरी तरह से टूट चुके हैं मगर बेटी के इंसाफ की लड़ाई लडऩे का उनका जज्बा आज भी जिंदा है। वे कहते हैं कि मामले के सीएम से लेकर पीएम तक और निचली से लेकर ऊपरी अदालत तक लेकर जाएंगे मगर उन पुलिस वाले गुंडों को किसी भी सूरत में बख्शेंगे नहीं, जो उसकी लाडली बेटी की मौत के जिम्मेदार हैं।
सोमवार, जून 21, 2010
Shiksha Sadans in Haryana for teachers
Devinder Dangi
Chandigarh, June 21
Shiksha Sadans will be constructed in Haryana as per need to provide better facilities to the teachers. Till date, there is only one Shiksha Sadan at Panchkula in the State.
This was disclosed by the Education Minister, Haryana Mrs Geeta Bhukkal at Jhajjar today.
She said that Shiksa Sadans would provide a kind of facility of a rest house to the teachers. The topic of constructing Shiksha Sadans for teachers was also discussed in the conference of Education Ministers organised recently at National level in New Delhi. The procedure of providing facilities like health insurance, loans, etc to the teachers would also be simplified so that maximum numbers of teachers could take benefit of the facilities being provided to them by the government.
Mrs. Bhukkal said that she felt proud that Haryana ranked among those leading states which are providing quality education to their children.
The state had the facility of primary school within a radius of 1 km and secondary school within a radius of 3 km.
Mrs. Bhukkal said that in the recently concluded conference of Education Ministers she forcefully took up the matter of giving rights to the state to decide the number of colleges and universities in it. With the laying of foundation stone of Rajiv Gandhi Education City in Haryana, a new era of education had already been ushered in the state.
Mrs. Bhukkal , who is also Health Minister, inaugurated special pulse polio campaign in Jhajjar by administering polio drops to a number of children at brick kilns. As many as 28,000 children would be administered pulse polio drops under special pulse polio campaign in district Jhajjar alone. Polio drops would also be administered to all the children of the people working in 2100 factories and 400 brick kilns during the three – day campaign. Although no case of polio had been registered in Haryana, the health workers should not be negligent in administering polio drops and they should ensure that all children in the age group of 0-5 years were covered under the campaign, she added.
Earlier, she heard the grievances of the people at her residence and ordered the officers concerned to redress them immediately. The officers should personally visit the villages which are continuously facing the problem of drinking water for human beings and animals and take appropriate steps ensure adequate supply of drinking water to these villages, she said.
Mr. Chiranji Lal Sharma, President District Congress was also present on this occasion.
Chandigarh, June 21
Shiksha Sadans will be constructed in Haryana as per need to provide better facilities to the teachers. Till date, there is only one Shiksha Sadan at Panchkula in the State.
This was disclosed by the Education Minister, Haryana Mrs Geeta Bhukkal at Jhajjar today.
She said that Shiksa Sadans would provide a kind of facility of a rest house to the teachers. The topic of constructing Shiksha Sadans for teachers was also discussed in the conference of Education Ministers organised recently at National level in New Delhi. The procedure of providing facilities like health insurance, loans, etc to the teachers would also be simplified so that maximum numbers of teachers could take benefit of the facilities being provided to them by the government.
Mrs. Bhukkal said that she felt proud that Haryana ranked among those leading states which are providing quality education to their children.
The state had the facility of primary school within a radius of 1 km and secondary school within a radius of 3 km.
Mrs. Bhukkal said that in the recently concluded conference of Education Ministers she forcefully took up the matter of giving rights to the state to decide the number of colleges and universities in it. With the laying of foundation stone of Rajiv Gandhi Education City in Haryana, a new era of education had already been ushered in the state.
Mrs. Bhukkal , who is also Health Minister, inaugurated special pulse polio campaign in Jhajjar by administering polio drops to a number of children at brick kilns. As many as 28,000 children would be administered pulse polio drops under special pulse polio campaign in district Jhajjar alone. Polio drops would also be administered to all the children of the people working in 2100 factories and 400 brick kilns during the three – day campaign. Although no case of polio had been registered in Haryana, the health workers should not be negligent in administering polio drops and they should ensure that all children in the age group of 0-5 years were covered under the campaign, she added.
Earlier, she heard the grievances of the people at her residence and ordered the officers concerned to redress them immediately. The officers should personally visit the villages which are continuously facing the problem of drinking water for human beings and animals and take appropriate steps ensure adequate supply of drinking water to these villages, she said.
Mr. Chiranji Lal Sharma, President District Congress was also present on this occasion.
डोनेशन लेकर नियुक्ति करना अब पड़ेगा महंगा
- नियुक्तियां देने वाले कालेज को विश्वविद्यालय ने भेजा कारण बताओ नोटिस
- रद्द की जा सकती है कालेज को मिली मान्यता
देवेन्द्र दांगी
रोहतक,15 जून
डोनेशन लेकर नियुक्तियां करने वाले कालेजों के लिए बुरी खबर है। ऐसा करने पर अब उनकी मान्यता भी रद्द हो सकती है। ऐसे एक मामले को लेकर मदवि ने कनीना के एक कालेज से जवाब भी तलब किया है। डोनेशन लेकर प्राध्यापक पद पर नियुक्ति करने वाले पीकेएसडी कालेज, कनीना को महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय ने हाल ही में कारण बताओ नोटिस जारी कर डोनेशन लेने पर कड़ी आपत्ति जाहिर की है। साथ ही कहा है कि क्यों न यह गैर कानूनी कार्य करने के लिए उसकी मान्यता वापस ले ली जाए। विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह नोटिस उस जांच रिपोर्ट का अध्ययन करने के पश्चात जारी किया हैं, जिसमें यह खुलासा किया गया था कि कालेज में नियुक्त किए गए कुल 14 अ यर्थियों में से 12 ने डोनेशन की बिनाह पर ही नियुक्ति पाई है।विश्वविद्यालय प्रशासन को पीकेएसडी कालेज के खिलाफ कई ऐसी शिकायतें मिली थीं, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि कालेज प्रशासन डोनेशन लेकर प्राध्यापकों की नियमित नियुक्तियां कर रहा है। कालेज ने प्रत्येक प्राध्यापकों के विषयों अनुसार डोनेशन के रेट तय कर रखे हैं। जब भी इन पदों को भरने का वक्त आता है तो प्रशासन उन अ यर्थियों को ही कालेज में नियुक्त करता है, जो कालेज रेट के मुताबिक डोनेशन जमा करवाते हैं।शिकायत में कहा गया था कि कालेज प्रशासन ऐसा करके न केवल कानून की धज्जियां उड़ा रहा है, बल्कि मेरिटोरियस अ यर्थियों के अवसरों को भी खत्म कर रहा है। शिकायतकर्ताओं ने अपनी इस शिकायत को पूरी तरह से तथ्यात्मक करार देते हुए अपने बयानों के समर्थन में शपथ पत्र भी विश्वविद्यालय को भेजे थे, जिसमें मामले की निष्पक्ष जांच करवाने की मांग की गई थी।शिकायत को गंभीर मानते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक दो-सदस्यीय जांच समिति का गठन किया था, जिसने कालेज में जाकर न केवल उसके खातों की जांच की थी, बल्कि प्राध्यापक पद पर नियुक्ति प्राप्त करने वाले 14 अ यर्थियों के बयान भी कलमबद्ध किये थे।शिकायत के तमाम पहलुओं का गहराई से अध्ययन करने के पश्चात जांच समिति ने जो अपनी रिपोर्ट पेश की, वह निसंदेह चौंकाने वाली थी। रिपोर्ट में कमेटी का कहना था कि कालेज में नवनियुक्त 14 प्राध्यापकों में से 12 ने जांच के दौरान यह बात साफ तौर पर स्वीकार की कि उनके नजदीकी रिश्तेदारों ने नियुक्तियों के बदले में कालेज में डोनेशन दी थी।रिपोर्ट में जांच समिति का कहना था कि कालेजों द्वारा चलाई जा रही इस प्रथा को बंद करने के लिए सुधारात्मक कार्रवाई की बेहद आवश्यकता है क्योंकि यह प्रथा न तो शिक्षा जगत और न ही अ यर्थियों के लिए ही ठीक है। ऐसा चलता रहा तो उन अ यर्थियों को तो कहीं नौकरी ही नहीं मिल पाएगी, जो वास्तव में इसके हकदार है और अपनी मेहनत के बल पर मेरिटोरियस स्टूडेंट साबित हुए हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने जांच समिति की इस रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए नियुक्ति के बदले डोनेशन लेने को घोर आपत्तिजनक बताया है।
- रद्द की जा सकती है कालेज को मिली मान्यता
देवेन्द्र दांगी
रोहतक,15 जून
डोनेशन लेकर नियुक्तियां करने वाले कालेजों के लिए बुरी खबर है। ऐसा करने पर अब उनकी मान्यता भी रद्द हो सकती है। ऐसे एक मामले को लेकर मदवि ने कनीना के एक कालेज से जवाब भी तलब किया है। डोनेशन लेकर प्राध्यापक पद पर नियुक्ति करने वाले पीकेएसडी कालेज, कनीना को महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय ने हाल ही में कारण बताओ नोटिस जारी कर डोनेशन लेने पर कड़ी आपत्ति जाहिर की है। साथ ही कहा है कि क्यों न यह गैर कानूनी कार्य करने के लिए उसकी मान्यता वापस ले ली जाए। विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह नोटिस उस जांच रिपोर्ट का अध्ययन करने के पश्चात जारी किया हैं, जिसमें यह खुलासा किया गया था कि कालेज में नियुक्त किए गए कुल 14 अ यर्थियों में से 12 ने डोनेशन की बिनाह पर ही नियुक्ति पाई है।विश्वविद्यालय प्रशासन को पीकेएसडी कालेज के खिलाफ कई ऐसी शिकायतें मिली थीं, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि कालेज प्रशासन डोनेशन लेकर प्राध्यापकों की नियमित नियुक्तियां कर रहा है। कालेज ने प्रत्येक प्राध्यापकों के विषयों अनुसार डोनेशन के रेट तय कर रखे हैं। जब भी इन पदों को भरने का वक्त आता है तो प्रशासन उन अ यर्थियों को ही कालेज में नियुक्त करता है, जो कालेज रेट के मुताबिक डोनेशन जमा करवाते हैं।शिकायत में कहा गया था कि कालेज प्रशासन ऐसा करके न केवल कानून की धज्जियां उड़ा रहा है, बल्कि मेरिटोरियस अ यर्थियों के अवसरों को भी खत्म कर रहा है। शिकायतकर्ताओं ने अपनी इस शिकायत को पूरी तरह से तथ्यात्मक करार देते हुए अपने बयानों के समर्थन में शपथ पत्र भी विश्वविद्यालय को भेजे थे, जिसमें मामले की निष्पक्ष जांच करवाने की मांग की गई थी।शिकायत को गंभीर मानते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक दो-सदस्यीय जांच समिति का गठन किया था, जिसने कालेज में जाकर न केवल उसके खातों की जांच की थी, बल्कि प्राध्यापक पद पर नियुक्ति प्राप्त करने वाले 14 अ यर्थियों के बयान भी कलमबद्ध किये थे।शिकायत के तमाम पहलुओं का गहराई से अध्ययन करने के पश्चात जांच समिति ने जो अपनी रिपोर्ट पेश की, वह निसंदेह चौंकाने वाली थी। रिपोर्ट में कमेटी का कहना था कि कालेज में नवनियुक्त 14 प्राध्यापकों में से 12 ने जांच के दौरान यह बात साफ तौर पर स्वीकार की कि उनके नजदीकी रिश्तेदारों ने नियुक्तियों के बदले में कालेज में डोनेशन दी थी।रिपोर्ट में जांच समिति का कहना था कि कालेजों द्वारा चलाई जा रही इस प्रथा को बंद करने के लिए सुधारात्मक कार्रवाई की बेहद आवश्यकता है क्योंकि यह प्रथा न तो शिक्षा जगत और न ही अ यर्थियों के लिए ही ठीक है। ऐसा चलता रहा तो उन अ यर्थियों को तो कहीं नौकरी ही नहीं मिल पाएगी, जो वास्तव में इसके हकदार है और अपनी मेहनत के बल पर मेरिटोरियस स्टूडेंट साबित हुए हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने जांच समिति की इस रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए नियुक्ति के बदले डोनेशन लेने को घोर आपत्तिजनक बताया है।
कैश बुक में भी दर्ज थे अभ्यर्थियों के नाम
-मामला डोनेशन लेकर पीकेएसडी कालेज कनीना में स्थायी नियुक्तियां करने का
देवेन्द्र दांगी
रोहतक, 16 जून
डोनेशन लेकर स्टाफ की नियुक्तियां करने के मामले में सुर्खियों में आए कनीना के पीकेएसडी कालेज में पूरा खेल सरेआम चलता था। अहम बात तो यह भी कि डोनेशन लेने का सिलसिला गुप्त रूप से नहीं बल्कि खुलेआम चल रहा था। इस कालेज की कैश बुक में डोनेशन देने वाले लोगों के नामों के साथ उन अभ्यर्थियों के नाम भी लिखे जाते थे, जिनकी नियुक्ति या तो कालेज में की जानी थी या फिर यह काम पहले ही निपटा लिया गया था। ऐसा इसलिए होता था ताकि कैश बुक में दर्ज प्रविष्टि को देखने मात्र से ही इस बात का पता लग सके कि डोनेशन देने वाला शख्स किस उम्मीदवार का रिश्तेदार है। यह सनसनीखेज खुलासा तब हुआ जब महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय की दो-सदस्यीय जांच कमेटी ने कालेज के खिलाफ मिली शिकायतों की इंक्वायरी के दौरान कैस एकाउंट्स का गहराई से अध्ययन किया। जांच करने पर कमेटी को कैश बुक में 14 ऐसे पेज मिले, जिसमें दर्ज प्रविष्टि में दानवीरों के नाम एवं उनके द्वारा दान दी गई राशि के अलावा कालेज में चयनित अभ्यर्थियों से उनके रिश्ते भी दर्ज किये गये हैं।रिश्तदारों और दान के संबंध की बात उस समय और भी पुख्ता हो गई जब एमडीयू से गई इंक्वायरी कमेटी ने इस सिलसिले में सभी चयनित 14 अभ्यर्थियों के बयान दर्ज किए। आश्चर्य की बात है कि इन 14 में से 12 अभ्यर्थियों ने बेहिचक यह बात कबूल की कि कालेज को डोनेशन देने वाले उनके करीबी रिश्तेदार थे। किसी अभ्यर्थी के पिता, किसी के ससुर तो किसी के पति ने कालेज को दान के रूप में भारी भरकम राशि दे रखी है। चूंकि, उक्त सभी पृष्ठ कालेज मैनेजमैंट के प्रधान ने स्वयं सत्यापित कर रखे थे लिहाजा उनके पास इन्हें गलत साबित करने का भी कोई कारण नहीं था। ऐसे में कालेज प्रशासन ने बचने के लिए एक और रास्ता तलाश किया। कालेज प्रशासन ने यह दलील देकर अपनी करतूत पर पर्दा डालने का प्रयास किया कि डोनेशन देने वाले तमाम दानवीरों ने अपनी मनमर्जी से कालेज को दान दिया था और इसके लिए उन पर कोई दबाव या सेटिंग जैसी बात नहीं थी। इसिलिए दानवीरों को बाकायदा डोनेशन की रसीद भी दी गई थी। बेशक, कालेज ने दानवीरों पर दान देने के लिए कभी कोई दबाव नहीं बनाया हो लेकिन जब जांच कमेटी ने नियमों का हवाला देकर जवाब-तलबी की तो कालेज प्राचार्य ने स्वीकार किया कि चयनित अभ्यर्थियों के रिश्तेदारों ने उनके यहां दान दिया था। इतना हीं नहीं, कालेज का यह भी कहना था कि चयनित अभ्यर्थियों का चयन मेरिट के आधार पर किया गया था क्योंकि चयन समिति में विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बतौर एक्सपर्ट शामिल किए गए थे, जिन्होंने साक्षात्कार के वक्त अभ्यर्थियों के शैक्षणिक रिकार्ड के साथ-साथ संबंधित विषय में उनकी नॉलिज की परीक्षा भी ली थी। इस सब के आधार पर ही अभ्यर्थियों का चयन किया गया था लिहाजा यह कहना उचित नहीं कि चयन में मेरिटोरियस स्टूडेंट्स की अनदेखी की गई है।तमाम दलीलें सुनने एवं रिकार्ड की छानबीन के बाद एमडीयू से गई इंक्वायरी कमेटी इस निष्कर्ष पर पहुंची कि कालेज द्वारा नियुक्तियों के बदले में खुलेआम डोनेशन ली गई, जो कि शिक्षा की सेहत के लिए किसी भी तरह वाजिब नहीं है। ऐसे में इस कमेटी ने विश्वविद्यालय प्रशासन को कालेज के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ-साथ ऐसे सुधारात्मक कदम उठाने की सिफारिश भी की थी, जिससे इस गैर-कानूनी प्रक्रिया को रोका जा सकें।यहां बताते चलें कि नियुक्ति के बदले डोनेशन लेने पर कड़ी आपत्ति जाहिर करते हुए महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय प्रशासन ने हाल ही में पीकेएसडी कालेज कनीना को कारण बताओ नोटिस जारी किया हैं।नोटिस में कालेज प्रशासन से यह जवाब तलबी करते हुए यह भी कहा गया है कि क्यों न इस गैर कानूनी कार्य के लिए उसकी मान्यता वापस ले ली जाए। विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह नोटिस उस जांच रिपोर्ट का अध्ययन करने के उपरांत जारी किया हैं, जिसमें यह खुलासा किया गया था कि कालेज में नियुक्त किए गए कुल 14 अभ्यर्थियों में से 12 अभ्यर्थियों ने डोनेशन के बिनाह पर ही नियुक्ति पाई है।
देवेन्द्र दांगी
रोहतक, 16 जून
डोनेशन लेकर स्टाफ की नियुक्तियां करने के मामले में सुर्खियों में आए कनीना के पीकेएसडी कालेज में पूरा खेल सरेआम चलता था। अहम बात तो यह भी कि डोनेशन लेने का सिलसिला गुप्त रूप से नहीं बल्कि खुलेआम चल रहा था। इस कालेज की कैश बुक में डोनेशन देने वाले लोगों के नामों के साथ उन अभ्यर्थियों के नाम भी लिखे जाते थे, जिनकी नियुक्ति या तो कालेज में की जानी थी या फिर यह काम पहले ही निपटा लिया गया था। ऐसा इसलिए होता था ताकि कैश बुक में दर्ज प्रविष्टि को देखने मात्र से ही इस बात का पता लग सके कि डोनेशन देने वाला शख्स किस उम्मीदवार का रिश्तेदार है। यह सनसनीखेज खुलासा तब हुआ जब महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय की दो-सदस्यीय जांच कमेटी ने कालेज के खिलाफ मिली शिकायतों की इंक्वायरी के दौरान कैस एकाउंट्स का गहराई से अध्ययन किया। जांच करने पर कमेटी को कैश बुक में 14 ऐसे पेज मिले, जिसमें दर्ज प्रविष्टि में दानवीरों के नाम एवं उनके द्वारा दान दी गई राशि के अलावा कालेज में चयनित अभ्यर्थियों से उनके रिश्ते भी दर्ज किये गये हैं।रिश्तदारों और दान के संबंध की बात उस समय और भी पुख्ता हो गई जब एमडीयू से गई इंक्वायरी कमेटी ने इस सिलसिले में सभी चयनित 14 अभ्यर्थियों के बयान दर्ज किए। आश्चर्य की बात है कि इन 14 में से 12 अभ्यर्थियों ने बेहिचक यह बात कबूल की कि कालेज को डोनेशन देने वाले उनके करीबी रिश्तेदार थे। किसी अभ्यर्थी के पिता, किसी के ससुर तो किसी के पति ने कालेज को दान के रूप में भारी भरकम राशि दे रखी है। चूंकि, उक्त सभी पृष्ठ कालेज मैनेजमैंट के प्रधान ने स्वयं सत्यापित कर रखे थे लिहाजा उनके पास इन्हें गलत साबित करने का भी कोई कारण नहीं था। ऐसे में कालेज प्रशासन ने बचने के लिए एक और रास्ता तलाश किया। कालेज प्रशासन ने यह दलील देकर अपनी करतूत पर पर्दा डालने का प्रयास किया कि डोनेशन देने वाले तमाम दानवीरों ने अपनी मनमर्जी से कालेज को दान दिया था और इसके लिए उन पर कोई दबाव या सेटिंग जैसी बात नहीं थी। इसिलिए दानवीरों को बाकायदा डोनेशन की रसीद भी दी गई थी। बेशक, कालेज ने दानवीरों पर दान देने के लिए कभी कोई दबाव नहीं बनाया हो लेकिन जब जांच कमेटी ने नियमों का हवाला देकर जवाब-तलबी की तो कालेज प्राचार्य ने स्वीकार किया कि चयनित अभ्यर्थियों के रिश्तेदारों ने उनके यहां दान दिया था। इतना हीं नहीं, कालेज का यह भी कहना था कि चयनित अभ्यर्थियों का चयन मेरिट के आधार पर किया गया था क्योंकि चयन समिति में विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बतौर एक्सपर्ट शामिल किए गए थे, जिन्होंने साक्षात्कार के वक्त अभ्यर्थियों के शैक्षणिक रिकार्ड के साथ-साथ संबंधित विषय में उनकी नॉलिज की परीक्षा भी ली थी। इस सब के आधार पर ही अभ्यर्थियों का चयन किया गया था लिहाजा यह कहना उचित नहीं कि चयन में मेरिटोरियस स्टूडेंट्स की अनदेखी की गई है।तमाम दलीलें सुनने एवं रिकार्ड की छानबीन के बाद एमडीयू से गई इंक्वायरी कमेटी इस निष्कर्ष पर पहुंची कि कालेज द्वारा नियुक्तियों के बदले में खुलेआम डोनेशन ली गई, जो कि शिक्षा की सेहत के लिए किसी भी तरह वाजिब नहीं है। ऐसे में इस कमेटी ने विश्वविद्यालय प्रशासन को कालेज के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ-साथ ऐसे सुधारात्मक कदम उठाने की सिफारिश भी की थी, जिससे इस गैर-कानूनी प्रक्रिया को रोका जा सकें।यहां बताते चलें कि नियुक्ति के बदले डोनेशन लेने पर कड़ी आपत्ति जाहिर करते हुए महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय प्रशासन ने हाल ही में पीकेएसडी कालेज कनीना को कारण बताओ नोटिस जारी किया हैं।नोटिस में कालेज प्रशासन से यह जवाब तलबी करते हुए यह भी कहा गया है कि क्यों न इस गैर कानूनी कार्य के लिए उसकी मान्यता वापस ले ली जाए। विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह नोटिस उस जांच रिपोर्ट का अध्ययन करने के उपरांत जारी किया हैं, जिसमें यह खुलासा किया गया था कि कालेज में नियुक्त किए गए कुल 14 अभ्यर्थियों में से 12 अभ्यर्थियों ने डोनेशन के बिनाह पर ही नियुक्ति पाई है।
पैरोल या रिहाई !
~पैरोल जम्प कर गायब होना पुलिस से बचने का है आसान रास्ता
देवेंद्र दांगी
रोहतक, 20 जून
कोई अपराधी यदि जेल की सलाखों से बाहर निकलकर आजाद जिंदगी जीना चाहे तो जी सकता है। उसको रोकने-टोकने वाला शायद कोई नहीं होगा। यह बात हम नहीं कह रहे बल्कि पुलिस डिपार्टमेंट का वह रिकार्ड खुद यह हकीकत बयान कर रहा है, जिसके पन्ने पलटने पर मालूम पड़ता है कि यहां तो पैरोल जम्प करने के 28 साल बाद पुलिस किसी का कुछ नहीं बिगाड़ पाई है।
भले ही कुछ मामलों में रोहतक पुलिस ने रिकार्ड वक्त में संगीन वारदात को साल्व कर अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने का बहादुरी भरा कार्य किया है मगर, यही पुलिस पैरोल जम्परों के मामले को लेकर गंभीर नजर नहीं आती। सरकारी रिकार्ड सच्चाई बता रहा है कि पुलिस इस मामले में कितनी संजीदगी से काम कर रही है।
गौर फरमाएं तो मालूम पड़ता है कि फिलहाल भी 31 ऐसे अपराधी खुली हवा में सांस ले रहे हैं, जिनको गुजरे वक्त में एक तय समय सीमा के लिए पैरोल पर जेल से बाहर किया गया था। ये वे अपराधी है जो किसी न किसी जुर्म में अदालती आदेशों के बाद जेल के सींखचों के पीछे डाले गये थे।
आखिर पैरोल मिलने के बाद ये लोग कहां गायब हो गये, यह बताने में फिलहाल कोई भी पुलिस अधिकारी सक्षम नजर नहीं आ रहा। बल्कि, हकीकत तो यह है कि पुलिस अपने रूटीन के कामों में ही इतना उलझी रहती है कि पैरोल जम्परों की ओर उतना ध्यान नहीं दे पाती जितना दिया जाना चाहिए।
एक आला पुलिस अधिकारी खुद भी इस सच्चाई को स्वीकारते हैं। वे कहते हैं कि पैरोल हासिल कर जेल से बाहर आने के कानूनी प्रावधान का कुछ आपराधिक तत्व भी फायदा उठा जाते हैं लेकिन, इनमें से अगर कोई पैरोल अवधि को जम्प करता है तो पुलिस उसे गिरफ्तार करने का पूरा प्रयास करती है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब पैरोल जम्परों को गिरफ्तार किया जाता है।
वहीं एक अन्य उच्चाधिकारी से बात की गई तो उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के इस कड़वी हकीकत को स्वीकार किया कि पैरोल जम्पर लम्बे समय तक भी पुलिस से बचे रहते हैं। बैकोल उक्त अधिकारी, पुलिस महकमे के सिपाही पहले ही काम के बोझ से इतने दबे हुए हैं कि उनको अपने परिवारों को संभालने की फुर्सत भी कम ही मिल पाती है।
ऐसे में पैरोल जम्परों को तलाश करने पर कोई कितना ध्यान लगाएगा, यह आम आदमी भी सोच सकता है। इसका तो बस एक ही इलाज है कि अदालत कम से कम अपराधियों को पैरोल दें। इसके अलावा पैरोज जम्प करने वालों को फिर से जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने का जिम्मा बाकायदा एक ऐसी सैल के कंधों पर हो, जिसे रूटीन के कामों से दूर रखा जाए। यदि ऐसा होगा तो हालात अपने आप सुधर जाएंगे।
कोई 22 से तो कोई 28 साल से फरार
पैरोल हासिल कर गायब हुए उसे 28 साल हो गये हैं मगर आज तक पुलिस के हाथ नहीं लग सका। यहां जिक्र हो रहा है भापड़ोदा गांव वासी होशियार सिंह का, जो पुलिस रिकार्ड में 1982 से पैरोल जम्पर है। महज होशियार ही क्यों ऐसे अनेक हैं, जिनको 20 साल से भी अधिक वक्त गुजर चुका है मगर पुलिस उनकी परछाई से भी कोसों दूर ही रही। पुलिस की लिस्ट को देखें तो फिलहाल 31 की तलाश चल रही है। इनमें से कौन जिंदा या कौन नहीं, यह भी पुलिस को नहीं मालूम। लिस्ट के मुताबिक मंगत राम वासी बखेता मई 2003 से पैरोल जम्पर है जबकि नरेन्द्र वासी पाकस्मा 2004 से, नवीन वासी आसन 2004 से, नरेश वासी चुलियाना 2007 से, जरनैल वासी रोहतक 2003 से, संजय वासी रोहतक 2006 से, राजसिंह वासी गांधरा 1990 से, सुजानी व सुभाष निवासी मोखरा 2001 से, रणबीर वासी बहुअकबरपुर 2002 से, राजेन्द्र वासी मोरखेड़ी 1989 से, ईश्वर वासी लाखनमाजरा 2006 से, मंगल फरमाना 2007 से, रामकुमार वासी मोखरा 2008 से, संदीप वासी जसीया 2006 से, सुनील वासी खिडवाली 2007 से, राजेश 2005 से, राज सिंह वासी मकड़ोली 2008 से, बलराज वासी रोहद 1999 से, नवीन बहादुरगढ 2000 से, नफे सिंह बहादुरगढ 2003 से, महीपाल वासी दुबलधन माजरा 2000 से, भंवर सिंह रिवाडी 1991 से, राजेन्द्र वासी सांखोरी 1988 से, सैंदो वासी रामपुर खेड़ी 2002 से, वीरेन्द्र दिचाऊ 2008 से, मोहिन्दर वासी गौतमबुद्ध नगर 2001 से, मनोज वासी सपोली बिहार 2000 से तथा गुरमीत वासी पटेल नगर रोहतक 2009 के अलावा खिडवाली गांव का अशोक 2009 से पैरोल लेकर फरार हैं।
देवेंद्र दांगी
रोहतक, 20 जून
कोई अपराधी यदि जेल की सलाखों से बाहर निकलकर आजाद जिंदगी जीना चाहे तो जी सकता है। उसको रोकने-टोकने वाला शायद कोई नहीं होगा। यह बात हम नहीं कह रहे बल्कि पुलिस डिपार्टमेंट का वह रिकार्ड खुद यह हकीकत बयान कर रहा है, जिसके पन्ने पलटने पर मालूम पड़ता है कि यहां तो पैरोल जम्प करने के 28 साल बाद पुलिस किसी का कुछ नहीं बिगाड़ पाई है।
भले ही कुछ मामलों में रोहतक पुलिस ने रिकार्ड वक्त में संगीन वारदात को साल्व कर अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने का बहादुरी भरा कार्य किया है मगर, यही पुलिस पैरोल जम्परों के मामले को लेकर गंभीर नजर नहीं आती। सरकारी रिकार्ड सच्चाई बता रहा है कि पुलिस इस मामले में कितनी संजीदगी से काम कर रही है।
गौर फरमाएं तो मालूम पड़ता है कि फिलहाल भी 31 ऐसे अपराधी खुली हवा में सांस ले रहे हैं, जिनको गुजरे वक्त में एक तय समय सीमा के लिए पैरोल पर जेल से बाहर किया गया था। ये वे अपराधी है जो किसी न किसी जुर्म में अदालती आदेशों के बाद जेल के सींखचों के पीछे डाले गये थे।
आखिर पैरोल मिलने के बाद ये लोग कहां गायब हो गये, यह बताने में फिलहाल कोई भी पुलिस अधिकारी सक्षम नजर नहीं आ रहा। बल्कि, हकीकत तो यह है कि पुलिस अपने रूटीन के कामों में ही इतना उलझी रहती है कि पैरोल जम्परों की ओर उतना ध्यान नहीं दे पाती जितना दिया जाना चाहिए।
एक आला पुलिस अधिकारी खुद भी इस सच्चाई को स्वीकारते हैं। वे कहते हैं कि पैरोल हासिल कर जेल से बाहर आने के कानूनी प्रावधान का कुछ आपराधिक तत्व भी फायदा उठा जाते हैं लेकिन, इनमें से अगर कोई पैरोल अवधि को जम्प करता है तो पुलिस उसे गिरफ्तार करने का पूरा प्रयास करती है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब पैरोल जम्परों को गिरफ्तार किया जाता है।
वहीं एक अन्य उच्चाधिकारी से बात की गई तो उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के इस कड़वी हकीकत को स्वीकार किया कि पैरोल जम्पर लम्बे समय तक भी पुलिस से बचे रहते हैं। बैकोल उक्त अधिकारी, पुलिस महकमे के सिपाही पहले ही काम के बोझ से इतने दबे हुए हैं कि उनको अपने परिवारों को संभालने की फुर्सत भी कम ही मिल पाती है।
ऐसे में पैरोल जम्परों को तलाश करने पर कोई कितना ध्यान लगाएगा, यह आम आदमी भी सोच सकता है। इसका तो बस एक ही इलाज है कि अदालत कम से कम अपराधियों को पैरोल दें। इसके अलावा पैरोज जम्प करने वालों को फिर से जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने का जिम्मा बाकायदा एक ऐसी सैल के कंधों पर हो, जिसे रूटीन के कामों से दूर रखा जाए। यदि ऐसा होगा तो हालात अपने आप सुधर जाएंगे।
कोई 22 से तो कोई 28 साल से फरार
पैरोल हासिल कर गायब हुए उसे 28 साल हो गये हैं मगर आज तक पुलिस के हाथ नहीं लग सका। यहां जिक्र हो रहा है भापड़ोदा गांव वासी होशियार सिंह का, जो पुलिस रिकार्ड में 1982 से पैरोल जम्पर है। महज होशियार ही क्यों ऐसे अनेक हैं, जिनको 20 साल से भी अधिक वक्त गुजर चुका है मगर पुलिस उनकी परछाई से भी कोसों दूर ही रही। पुलिस की लिस्ट को देखें तो फिलहाल 31 की तलाश चल रही है। इनमें से कौन जिंदा या कौन नहीं, यह भी पुलिस को नहीं मालूम। लिस्ट के मुताबिक मंगत राम वासी बखेता मई 2003 से पैरोल जम्पर है जबकि नरेन्द्र वासी पाकस्मा 2004 से, नवीन वासी आसन 2004 से, नरेश वासी चुलियाना 2007 से, जरनैल वासी रोहतक 2003 से, संजय वासी रोहतक 2006 से, राजसिंह वासी गांधरा 1990 से, सुजानी व सुभाष निवासी मोखरा 2001 से, रणबीर वासी बहुअकबरपुर 2002 से, राजेन्द्र वासी मोरखेड़ी 1989 से, ईश्वर वासी लाखनमाजरा 2006 से, मंगल फरमाना 2007 से, रामकुमार वासी मोखरा 2008 से, संदीप वासी जसीया 2006 से, सुनील वासी खिडवाली 2007 से, राजेश 2005 से, राज सिंह वासी मकड़ोली 2008 से, बलराज वासी रोहद 1999 से, नवीन बहादुरगढ 2000 से, नफे सिंह बहादुरगढ 2003 से, महीपाल वासी दुबलधन माजरा 2000 से, भंवर सिंह रिवाडी 1991 से, राजेन्द्र वासी सांखोरी 1988 से, सैंदो वासी रामपुर खेड़ी 2002 से, वीरेन्द्र दिचाऊ 2008 से, मोहिन्दर वासी गौतमबुद्ध नगर 2001 से, मनोज वासी सपोली बिहार 2000 से तथा गुरमीत वासी पटेल नगर रोहतक 2009 के अलावा खिडवाली गांव का अशोक 2009 से पैरोल लेकर फरार हैं।
रविवार, जून 13, 2010
27 मिनट का आंखों देखा हाल
सावधान! नशेड़ी गश्त पर हैं
सड़क पर जाम छलकाते मिले पुलिस कर्मचारी
देवेंद्र दांगी।
रोहतक, 13 जून।
नेशनल हाइवे पर पुलिस की ओपन जिप्सी में तेज आवाज में गूंजता पॉप संगीत, जिप्सी के ठीक पीछे बैठकर नशे में झूमते पुलिस वाले, चाकरी करते हुए उनको शराब परोसते एक सेवादार और अरेआम बदनाम होती खाकी वर्दी। यह वो हकीकत है जो 12 जून की देर रात शहर के हिसार बाईपास पर गुजरी।
कुछ पुलिस वालों की पूरे डिपार्टमेंट को ही शर्मसार कर देने वाली इस हकीकत से न केवल मैँ बल्कि राहगीर एवं आसपास मौजूद लोग भी रूबरू हुए। हालात देखकर लगा मानो शराबी पुलिस वालों ने खाकी वर्दी की बची-खुची इज्जत को भी नीलाम करने की कसमें खा रखी हों।
शनिवार की रात को पेश आए इस घटनाक्रम की 10:03 से लेकर 10 बजकर 30 मिनट तक की आंखों देखी दास्तां मैं आपको बता रहा हूं। जिप्सी नंबर - एच.आर.46बी-9129 नेशनल हाइवे नंबर-10 पर हिसार रोड बाईपास पर हनुमान मंदिर से कुछ आगे एमजी मोटर्स के पास एक ढाबे के बराबर में खड़ी थी। जिप्सी में तेज आवाज में हरियाणवी पॉप संगीत चल रहा था और चालक अपनी सीट पर ही सुस्ता रहा था। जिप्सी के पीछे लकड़ी के ल बे स्टूल पर शराब की बोतल एवं तीन-चार गिलास व नमकीन भी रखी थी। वहां पड़ी प्लास्टिक की कुर्सियों पर दो पुलिस वाले और एक सिविलियन बैठे जाम छलकाने में मस्त थे। सेवादार उनको पैग बनाकर देता और वे पैर फैलाए कुर्सी पर पसरे नमकीन के साथ चुस्कियां ले लेकर दारू गटक रहे थे।
इसी बीच उनकी आवाज पर ढाबे से एक लड़का भी कई बार दौड़कर आया और जनाब की फरमाइश पूरी करता रहा। इन 27 मिनट में पुलिस वालों का दारू पीकर यह हाल था कि उनका इस बात तक का याल तक नहीं रहा कि कोई अनजान श स बिलकुल नजदीक से उनकी हरकतें रिकार्ड कर रहा है। साथ लगते ढाबे पर बैठे कुछ ग्राहक आपस में उन शराबियों की हरकतों पर ही विचार-विमर्श कर रहे थे। एक बोला, बताओ क्या जमाना आ गया है। कानून का पाठ पढ़ाने वाले ही कानून की...(अपशब्द) हैं। आसपास बैठे लोगों ने भी उसके सुर में सुर मिलाया, मगर मय के नशे में झूम रहे पुलिस वालों को टोकने की हि मत किसी ने नहीं दिखाई। बस आपस में बातचीत करते हुए वे पुलिस वालों को कोसते रहे।
शराबी पुलिस वालों के बारे में उनकी टिप्पणी सुनकर इस बात का एहसास साफ तौर से हो चला था कि खाकी वर्दी के प्रति इन लोगों की सोच कहां तक पहुंच गई है। खैर, इसमें उन आम नागरिकों का कोई कसूर नहीं क्योंकि सामने का नजारा खुद उन्हें ऐसा सोचने और कहने पर मजबूर जो कर रहा था। दूसरी ओर, जिप्सी में अब भी हरियाणवी संस्कृति को तार-तार करता हुआ पॉप संगीत बज रहा था। इस बीच शराबी पुलिस वाले तीसरे श स यानी अपनी सेवादार को अपनी तथाकथित बहादुरी के किस्से सुनाने से भी नहीं चूके। यहां तक कि उनमें से एक ने तो अपने महकमे के प्रति अपनी छोटी सोच का परिचय देते हुए भद्दी भाषा में जमकर अपनी भड़ांस भी निकाली। यहां तक कि अपने ही महकमे के आला अफसरों के बारे में भी तरह-तरह की टिप्पणी उनके मुंह से सुनने को मिली, जिन्हें शराब पीकर खुद का ही ख्याल नहीं था।
खैर, जैसे-तैसे वक्त गुजरता रहा और जाम छलकते रहे। अंग्रेजी शराब की बोतल खत्म होने को ही थी कि सिटी थाने की एक और पुलिस जिप्सी वहां पर आकर खड़ी हुई। गनमैन एवं ड्राइवर अपने महकमे के दोनों जवानों को देखकर हैरान भी हुए और परेशान भी। करीब तीन मिनट तक उनमें बातचीत हुई। इसी दौरान गनमैन की नजर शराबी पुलिस वालों की हरकतें नजदीक से देख रहे मेरे ऊपर पड़ी तो उसने शराबी वर्दीधारियों को सावधान किया। साथ ही मुझसे भी पूछा कि आप यहां पर इतनी रात को क्या कर रहे हो। कुछ देर बातचीत का सिलसिला चला और जब उनको मालूम हुआ कि वे एक खबरची से बात कर रहे हैं तो स्थिति वाकई देखने वाली थी। शराब के जाम छलकाने वाले पुलिस वर्दीधारी भी आसन छोड़कर माफी मांगने लगे। बदले में करारा जवाब मिला तो उन्होंने गश्त करने की बात कहते हुए भाग निकलने में ही अपनी भलाई समझी। नाम पूछे जाने पर कोई जवाब देने की बजाय उन्होंने गाड़ी में हरियाणवी पॉप संगीत का आनन्द लेते हुए सुस्ता रहे अपने तीसरे साथी को आवाज लगाई और जिप्सी में बैठकर शहर की ओर निकल भागे।
मामले को लेकर अगले रोज आईजीपी वी. कामाराजा से बातचीत की गई तो वे खुद हैरान थे कि किस कद्र कुछ वर्दीधारी अपनी करतूतों से पूरे पुलिस डिपार्टमेंट को ही बदनाम करने का काम कर रहे हैं। खैर, आईजी साहब ने आश्वासन दिया कि दोषी पुलिस वालों को सस्पेंड किया जाएगा और मामले की बारीकी से जांच होगी।
सड़क पर जाम छलकाते मिले पुलिस कर्मचारी
देवेंद्र दांगी।
रोहतक, 13 जून।
नेशनल हाइवे पर पुलिस की ओपन जिप्सी में तेज आवाज में गूंजता पॉप संगीत, जिप्सी के ठीक पीछे बैठकर नशे में झूमते पुलिस वाले, चाकरी करते हुए उनको शराब परोसते एक सेवादार और अरेआम बदनाम होती खाकी वर्दी। यह वो हकीकत है जो 12 जून की देर रात शहर के हिसार बाईपास पर गुजरी।
कुछ पुलिस वालों की पूरे डिपार्टमेंट को ही शर्मसार कर देने वाली इस हकीकत से न केवल मैँ बल्कि राहगीर एवं आसपास मौजूद लोग भी रूबरू हुए। हालात देखकर लगा मानो शराबी पुलिस वालों ने खाकी वर्दी की बची-खुची इज्जत को भी नीलाम करने की कसमें खा रखी हों।
शनिवार की रात को पेश आए इस घटनाक्रम की 10:03 से लेकर 10 बजकर 30 मिनट तक की आंखों देखी दास्तां मैं आपको बता रहा हूं। जिप्सी नंबर - एच.आर.46बी-9129 नेशनल हाइवे नंबर-10 पर हिसार रोड बाईपास पर हनुमान मंदिर से कुछ आगे एमजी मोटर्स के पास एक ढाबे के बराबर में खड़ी थी। जिप्सी में तेज आवाज में हरियाणवी पॉप संगीत चल रहा था और चालक अपनी सीट पर ही सुस्ता रहा था। जिप्सी के पीछे लकड़ी के ल बे स्टूल पर शराब की बोतल एवं तीन-चार गिलास व नमकीन भी रखी थी। वहां पड़ी प्लास्टिक की कुर्सियों पर दो पुलिस वाले और एक सिविलियन बैठे जाम छलकाने में मस्त थे। सेवादार उनको पैग बनाकर देता और वे पैर फैलाए कुर्सी पर पसरे नमकीन के साथ चुस्कियां ले लेकर दारू गटक रहे थे।
इसी बीच उनकी आवाज पर ढाबे से एक लड़का भी कई बार दौड़कर आया और जनाब की फरमाइश पूरी करता रहा। इन 27 मिनट में पुलिस वालों का दारू पीकर यह हाल था कि उनका इस बात तक का याल तक नहीं रहा कि कोई अनजान श स बिलकुल नजदीक से उनकी हरकतें रिकार्ड कर रहा है। साथ लगते ढाबे पर बैठे कुछ ग्राहक आपस में उन शराबियों की हरकतों पर ही विचार-विमर्श कर रहे थे। एक बोला, बताओ क्या जमाना आ गया है। कानून का पाठ पढ़ाने वाले ही कानून की...(अपशब्द) हैं। आसपास बैठे लोगों ने भी उसके सुर में सुर मिलाया, मगर मय के नशे में झूम रहे पुलिस वालों को टोकने की हि मत किसी ने नहीं दिखाई। बस आपस में बातचीत करते हुए वे पुलिस वालों को कोसते रहे।
शराबी पुलिस वालों के बारे में उनकी टिप्पणी सुनकर इस बात का एहसास साफ तौर से हो चला था कि खाकी वर्दी के प्रति इन लोगों की सोच कहां तक पहुंच गई है। खैर, इसमें उन आम नागरिकों का कोई कसूर नहीं क्योंकि सामने का नजारा खुद उन्हें ऐसा सोचने और कहने पर मजबूर जो कर रहा था। दूसरी ओर, जिप्सी में अब भी हरियाणवी संस्कृति को तार-तार करता हुआ पॉप संगीत बज रहा था। इस बीच शराबी पुलिस वाले तीसरे श स यानी अपनी सेवादार को अपनी तथाकथित बहादुरी के किस्से सुनाने से भी नहीं चूके। यहां तक कि उनमें से एक ने तो अपने महकमे के प्रति अपनी छोटी सोच का परिचय देते हुए भद्दी भाषा में जमकर अपनी भड़ांस भी निकाली। यहां तक कि अपने ही महकमे के आला अफसरों के बारे में भी तरह-तरह की टिप्पणी उनके मुंह से सुनने को मिली, जिन्हें शराब पीकर खुद का ही ख्याल नहीं था।
खैर, जैसे-तैसे वक्त गुजरता रहा और जाम छलकते रहे। अंग्रेजी शराब की बोतल खत्म होने को ही थी कि सिटी थाने की एक और पुलिस जिप्सी वहां पर आकर खड़ी हुई। गनमैन एवं ड्राइवर अपने महकमे के दोनों जवानों को देखकर हैरान भी हुए और परेशान भी। करीब तीन मिनट तक उनमें बातचीत हुई। इसी दौरान गनमैन की नजर शराबी पुलिस वालों की हरकतें नजदीक से देख रहे मेरे ऊपर पड़ी तो उसने शराबी वर्दीधारियों को सावधान किया। साथ ही मुझसे भी पूछा कि आप यहां पर इतनी रात को क्या कर रहे हो। कुछ देर बातचीत का सिलसिला चला और जब उनको मालूम हुआ कि वे एक खबरची से बात कर रहे हैं तो स्थिति वाकई देखने वाली थी। शराब के जाम छलकाने वाले पुलिस वर्दीधारी भी आसन छोड़कर माफी मांगने लगे। बदले में करारा जवाब मिला तो उन्होंने गश्त करने की बात कहते हुए भाग निकलने में ही अपनी भलाई समझी। नाम पूछे जाने पर कोई जवाब देने की बजाय उन्होंने गाड़ी में हरियाणवी पॉप संगीत का आनन्द लेते हुए सुस्ता रहे अपने तीसरे साथी को आवाज लगाई और जिप्सी में बैठकर शहर की ओर निकल भागे।
मामले को लेकर अगले रोज आईजीपी वी. कामाराजा से बातचीत की गई तो वे खुद हैरान थे कि किस कद्र कुछ वर्दीधारी अपनी करतूतों से पूरे पुलिस डिपार्टमेंट को ही बदनाम करने का काम कर रहे हैं। खैर, आईजी साहब ने आश्वासन दिया कि दोषी पुलिस वालों को सस्पेंड किया जाएगा और मामले की बारीकी से जांच होगी।
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