शुक्रवार, अगस्त 13, 2010

मदवि में रोल नंबरों का फर्जीवाड़ा-1

बिना दाखिला जारी किया रोल नंबर
- महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय का एक और चौंकाने वाला कारनामा
- जांच में दोषी पाये गये मदवि के दो कर्मचारी व एक कालेज का प्राचार्य

देवेंद्र दांगी
रोहतक, 10 अगस्त।
नित नये कारनामों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय ने एक और कारनामा कर दिखाया है। कारनामा भी ऐसा कि सुनने वाला दांतों तले अंगुलियां दबाये बिना न रहे। जी हां, विश्वविद्यालय ने बी.पी.एड कोर्स की वार्षिक परीक्षा हेतु एक ऐसे अभ्यर्थी को रोल नंबर जारी कर दिया, जिसने न तो इस कोर्स में दाखिला ले रखा था और न ही उसका नाम विश्वविद्यालय की रजिस्ट्रेशन ब्रांच में ही दर्ज था।
मामले का खुलासा तब हुआ जब राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने इस संबंध में मिली एक शिकायत बारे विश्वविद्यालय प्रशासन से जवाब मांगा। शिकायत की हकीकत जानने के लिए विश्वविद्यालय के आला अधिकारियों ने जब इस सनसनीखेज मामले की जांच करवाई तो उनकी आंखें भी फटी की फटी रह गई क्योंकि शिकायत में जारी अभ्यर्थी को रोल नंबर जारी करने की कही गई बात सौलह आने सही थी। जांच में पता चला कि इस सनसनीखेज मामले के सूत्रधार थे विश्वविद्यालय की रिजल्ट-वन ब्रांच के दो कर्मचारी, जिन्होंने नारनौल के गांव अमरपुर जोरासी स्थित संस्कृति इंस्टीच्यूट ऑफ एजुकेशन एंड टैक्रोलॉजी के प्राचार्य के साथ मिलकर इस मामले को अंजाम तक पहुंचाया था।
मामला उजागर होने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन इस कालेज की मान्यता रद्द करने की सोच रहा है, जिसके लिए उसने उक्त कालेज के प्रशासन को हाल ही में कारण बताओ नोटिस भी जारी किया है। नोटिस में साफ-साफ कहा गया है कि क्यों न कालेज की मान्यता वापस ले ली जाये। साथ ही कालेज प्रशासन से इस संबंध में जल्द से जल्द जवाब देने के लिए भी लिखा गया है। हुआ यह था कि विश्वविद्यालय प्रशासन को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की ओर से एक शिकायत मिली थी। जिसमें शिकायतकर्ता राशिदा जमाल ने संस्कृति कालेज के प्राचार्य के खिलाफ संगीन आरोप लगाते हुए कालेज की मान्यता रद्द करने की मांग की थी।
राशिदा का कहना था कि उसने सत्र 2008-09 हेतु फरवरी 2009 में उक्त कालेज के बी.पी.एड कोर्स में दाखिला लिया था। जिसकी एवज में उसने 40 हजार रुपए कालेज में जमा करवाये थे। अप्रैल 2009 में उसने कोर्स के प्रैक्टिकल एग्जाम भी दिये थे मगर एग्जाम शीट पर उससे यह कहकर दस्तखत नहीं करवाये गये कि प्रैक्टिकल एग्जाम में दस्तखत की जरूरत नहीं होती। इसके एक महीने बाद उससे पांच हजार रुपए लेकर उसे कोर्स की वार्षिक परीक्षा हेतु रोल नंबर 441654 जारी कर दिया गया। उसने विधिवत रूप से सभी विषयों की परीक्षा दी मगर, जब सितम्बर माह में रिजल्ट आया तो उसके पैरों तले की जमीन खिसक गई क्योंकि जिस रोल नंबर पर उसने परीक्षा दी थी, उस पर किसी एकता गंगवार का नाम लिखा हुआ था।
राशिदा जमाल द्वारा जब इस मामले को कालेज प्राचार्य के संज्ञान में लाया गया तो उसने यह कहकर उससे 5 हजार रुपये और ऐंठ लिये कि यह कलेरिकल मिस्टेक की वजह से हुआ है, जिसे दुरस्त करवा दिया जायेगा। राशिदा ने इसके लिए दो महीनों का इंतजार भी किया मगर, न तो नाम ही बदला गया और न ही उसकी मार्कशीट ही उसे मिल पाई। इसके बाद अपने मामले की तह में जाने के लिए राशिदा ने आरटीआई एक्ट का सहारा लिया, जिसने एक ऐसे सनसनीखेज मामले का रहस्योद्घाटन किया, जिसकी कल्पना राशिदा ने कभी सपने में भी नहीं की थी। आरटीआई से पता चला कि विश्वविद्यालय की कालेज ब्रांच ने राशिदा को जो रोल नंबर दिया था, वही रोल नंबर एकता गंगवार को भी जारी किया गया था।
आरटीआई से यह भी खुलासा हुआ कि राशिदा जमाल का दाखिला महज भारी भरकम रकम ऐंठने के चक्कर में पहले से ही भरी गई एक सीट पर किया गया था। जिस पर एकता गंगवार को दाखिल किया जा चुका था। एकता ने बाकायदा बी.पी.एड कोर्स के प्रैक्टिकल एग्जाम दे रखे थे और एग्जाम शीट पर उसने दस्तखत भी किये थे। अपनी शिकायत में राशिदा का कहना था कि उसे अंधेरे में रखकर कालेज प्राचार्य ने उसके साथ जालसाजी की है जिसके चलते उसे मानसिक परेशानी भुगतने के साथ-साथ एक लाख रुपये का नुकसान भी उठाना पड़ा है लिहाजा प्राचार्य के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए इस कालेज की बी.पी. एड की मान्यता भी रद्द कर दी जाये।
मामले की संजीदगी के मद्देनजर विश्वविद्यालय प्रशासन ने दो सीनियर प्रोफेसर की एक जांच कमेटी का गठन कर दिया। जिसने अपनी जांच में विश्वविद्यालय के रिजल्ट ब्रांच-एक के लिपिक जयदेव व सहायक ईश्वर दहिया के साथ कालेज प्राचार्य को गड़बड़ी करने के लिए दोषी ठहरा दिया। जांच कमेटी का कहना था कि उक्त दोनों कर्मचारियों ने प्राचार्य से मिलीभगत कर बगैर तथ्य जांचे ही एक रोल नंबर दो अभ्यर्थियों को जारी कर दिया। जिसमें से एक अभ्यर्थी ने विधिवत तौर पर न तो कोर्स में दाखिला ले रखा था और न ही उसका रजिस्ट्रेशन विश्वविद्यालय में हुआ था। यही कारण था कि वार्षिक परीक्षा तो राशिदा जमाल ने दी मगर रिजल्ट एकता गंगवार के नाम से घोषित हो गया।

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