
देवेंद्र दांगी
रोहतक, 27 जून : आखिरकार वही हुआ जिसका डर था। इंसाफ के लिए करीब एक महीने से मौत से जंग लड़ रही जिन्दगी आज हार गई। सविता की मौत ने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिये हैं। सबसे बड़ा सवाल तो ये कि क्या सरिता रेप सुसाइड मामले के बाद भी हरियाणा पुलिस ने कोई सबक नहीं सीखा है ? क्या बे-लगाम हो चुके कानून के इन तथाकथित रक्षकों की गैर कानूनी हरकतों पर लगाम कसने वाला कोई नहीं रहा ? कभी सरिता तो कभी सविता, आखिर इन अबला नारियों की आबरू पर हाथ डालने वाले गुंडे पुलिस वालों की हरकतें बंद हों तो कैसे ?
पानीपत के विकास नगर में रहने वाली सविता पुत्री सुभाष को बुरी तरह से जलने के उपरांत 23 दिन पहले पीजीआई में दाखिल कराया गया था। इससे पहले उसे पानीपत के एक प्राइवेट हास्पिटल में एडमिट कराया गया मगर चूंकि सविता का बदन तकरीबन अस्सी फीसदी तक झुलस चुका था, लिहाजा डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिये और सविता पीजीआई रेफर कर दी गई। इसके बाद से उसका पीजीआई के वार्ड 19 में उपचार चल रहा था, जो आज चल बसी। यूं तो तेज रफ्तार से भाग रहे हमारे समाज में आज किसी नारी का जलने के बाद अस्पताल पहुंचना आम बात हो चली है मगर सविता जिन हालात से गुजरकर यहां तक पहुंची वे किसी भी पत्थर दिल इनसान के भी दिल को दहला देने वाले रहे।
इस दर्दनाक कहानी की शुरूआत दरअसल करीब एक महीना पहले पानीपत से हुई थी। एक रोज सविता को पुलिस का एक मुखबिर एवं उसका दोस्त पुलिस की जिप्सी में बैठाकर थाने ले गये। इस काम में मुखबिर के दोस्त कुछ पुलिस वालों का भी पूरा-पूरा रोल रहा। थाने ले जाकर उसके साथ न केवल अभद्रता की गई बल्कि नारी के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली हरकतें भी हुई। उस वक्त तो सविता किसी तरह से हाथ-पैर जोडक़र उनके चंगुल से आजाद हो गई मगर वह चैन से अपने घर भी नहीं रह पाई। क्योंकि, सविता को अब वे पुलिस वाले तंग करने लगे थे। उनकी गंदी नजर उस अबला की आबरू पर थी और उन्होंने इसे जाहिर करने में भी कोई शरम महसूस नहीं की। सविता के सामने उसके भविष्य का वास्ता देते हुए बेहद ही आपिजनक शर्त रखी गई, जिसे पूरा करने की बजाय उस अबला ने खुद को आग के हवाले करना बेहतर सबझा। हालांकि, मामला जब मीडिया की सुर्खियां बनता नजर आया तो आला अधिकारियों ने आरोपी पुलिस वालों की शिनाख्त परेड का बंदोबस्त भी किया। पीजीआई में उपचाराधीन सविता के सामने वे दो चेहरे भी आए और वर्दी वालों के वेश में कानून के रक्षक बने भक्षकों की पहचान भी हुई मगर इसका नतीजा क्या निकला ? सविता और उसके पिता सुभाष हुड्डï को आस बंधी थी कि शिनाख्त परेड के बाद शायद दोषी पुलिस वालों को कुछ सजा मिलेगी मगर महकमे के बिगड़े तंत्र में सब कुछ उलझकर रह गया। इधर, इंसाफ की आस दिल में जलाए सविता मौत से जंग लड़ रही थी और उधर आरोपी पुलिस वाले खुले घूम रहे थे। आखिरकार एक अबला और कितना अपमान सहन करती। उपचार के दौरान पिछले कुछ दिन से सविता का स्वास्थ्य लगातार गिरता रहा और आखिरकार आज इंसाफ की आस लिए वह स्वर्ग सिधार गई। सविता के पिता सुभाष पिछले एक माह के घटनाक्रम में बुरी तरह से टूट चुके हैं मगर बेटी के इंसाफ की लड़ाई लडऩे का उनका जज्बा आज भी जिंदा है। वे कहते हैं कि मामले के सीएम से लेकर पीएम तक और निचली से लेकर ऊपरी अदालत तक लेकर जाएंगे मगर उन पुलिस वाले गुंडों को किसी भी सूरत में बख्शेंगे नहीं, जो उसकी लाडली बेटी की मौत के जिम्मेदार हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें