~पैरोल जम्प कर गायब होना पुलिस से बचने का है आसान रास्ता
देवेंद्र दांगी
रोहतक, 20 जून
कोई अपराधी यदि जेल की सलाखों से बाहर निकलकर आजाद जिंदगी जीना चाहे तो जी सकता है। उसको रोकने-टोकने वाला शायद कोई नहीं होगा। यह बात हम नहीं कह रहे बल्कि पुलिस डिपार्टमेंट का वह रिकार्ड खुद यह हकीकत बयान कर रहा है, जिसके पन्ने पलटने पर मालूम पड़ता है कि यहां तो पैरोल जम्प करने के 28 साल बाद पुलिस किसी का कुछ नहीं बिगाड़ पाई है।
भले ही कुछ मामलों में रोहतक पुलिस ने रिकार्ड वक्त में संगीन वारदात को साल्व कर अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने का बहादुरी भरा कार्य किया है मगर, यही पुलिस पैरोल जम्परों के मामले को लेकर गंभीर नजर नहीं आती। सरकारी रिकार्ड सच्चाई बता रहा है कि पुलिस इस मामले में कितनी संजीदगी से काम कर रही है।
गौर फरमाएं तो मालूम पड़ता है कि फिलहाल भी 31 ऐसे अपराधी खुली हवा में सांस ले रहे हैं, जिनको गुजरे वक्त में एक तय समय सीमा के लिए पैरोल पर जेल से बाहर किया गया था। ये वे अपराधी है जो किसी न किसी जुर्म में अदालती आदेशों के बाद जेल के सींखचों के पीछे डाले गये थे।
आखिर पैरोल मिलने के बाद ये लोग कहां गायब हो गये, यह बताने में फिलहाल कोई भी पुलिस अधिकारी सक्षम नजर नहीं आ रहा। बल्कि, हकीकत तो यह है कि पुलिस अपने रूटीन के कामों में ही इतना उलझी रहती है कि पैरोल जम्परों की ओर उतना ध्यान नहीं दे पाती जितना दिया जाना चाहिए।
एक आला पुलिस अधिकारी खुद भी इस सच्चाई को स्वीकारते हैं। वे कहते हैं कि पैरोल हासिल कर जेल से बाहर आने के कानूनी प्रावधान का कुछ आपराधिक तत्व भी फायदा उठा जाते हैं लेकिन, इनमें से अगर कोई पैरोल अवधि को जम्प करता है तो पुलिस उसे गिरफ्तार करने का पूरा प्रयास करती है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब पैरोल जम्परों को गिरफ्तार किया जाता है।
वहीं एक अन्य उच्चाधिकारी से बात की गई तो उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के इस कड़वी हकीकत को स्वीकार किया कि पैरोल जम्पर लम्बे समय तक भी पुलिस से बचे रहते हैं। बैकोल उक्त अधिकारी, पुलिस महकमे के सिपाही पहले ही काम के बोझ से इतने दबे हुए हैं कि उनको अपने परिवारों को संभालने की फुर्सत भी कम ही मिल पाती है।
ऐसे में पैरोल जम्परों को तलाश करने पर कोई कितना ध्यान लगाएगा, यह आम आदमी भी सोच सकता है। इसका तो बस एक ही इलाज है कि अदालत कम से कम अपराधियों को पैरोल दें। इसके अलावा पैरोज जम्प करने वालों को फिर से जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने का जिम्मा बाकायदा एक ऐसी सैल के कंधों पर हो, जिसे रूटीन के कामों से दूर रखा जाए। यदि ऐसा होगा तो हालात अपने आप सुधर जाएंगे।
कोई 22 से तो कोई 28 साल से फरार
पैरोल हासिल कर गायब हुए उसे 28 साल हो गये हैं मगर आज तक पुलिस के हाथ नहीं लग सका। यहां जिक्र हो रहा है भापड़ोदा गांव वासी होशियार सिंह का, जो पुलिस रिकार्ड में 1982 से पैरोल जम्पर है। महज होशियार ही क्यों ऐसे अनेक हैं, जिनको 20 साल से भी अधिक वक्त गुजर चुका है मगर पुलिस उनकी परछाई से भी कोसों दूर ही रही। पुलिस की लिस्ट को देखें तो फिलहाल 31 की तलाश चल रही है। इनमें से कौन जिंदा या कौन नहीं, यह भी पुलिस को नहीं मालूम। लिस्ट के मुताबिक मंगत राम वासी बखेता मई 2003 से पैरोल जम्पर है जबकि नरेन्द्र वासी पाकस्मा 2004 से, नवीन वासी आसन 2004 से, नरेश वासी चुलियाना 2007 से, जरनैल वासी रोहतक 2003 से, संजय वासी रोहतक 2006 से, राजसिंह वासी गांधरा 1990 से, सुजानी व सुभाष निवासी मोखरा 2001 से, रणबीर वासी बहुअकबरपुर 2002 से, राजेन्द्र वासी मोरखेड़ी 1989 से, ईश्वर वासी लाखनमाजरा 2006 से, मंगल फरमाना 2007 से, रामकुमार वासी मोखरा 2008 से, संदीप वासी जसीया 2006 से, सुनील वासी खिडवाली 2007 से, राजेश 2005 से, राज सिंह वासी मकड़ोली 2008 से, बलराज वासी रोहद 1999 से, नवीन बहादुरगढ 2000 से, नफे सिंह बहादुरगढ 2003 से, महीपाल वासी दुबलधन माजरा 2000 से, भंवर सिंह रिवाडी 1991 से, राजेन्द्र वासी सांखोरी 1988 से, सैंदो वासी रामपुर खेड़ी 2002 से, वीरेन्द्र दिचाऊ 2008 से, मोहिन्दर वासी गौतमबुद्ध नगर 2001 से, मनोज वासी सपोली बिहार 2000 से तथा गुरमीत वासी पटेल नगर रोहतक 2009 के अलावा खिडवाली गांव का अशोक 2009 से पैरोल लेकर फरार हैं।
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