रविवार, अप्रैल 17, 2011

कनिष्ठा ने जगाई बदलाव की उम्मीद

- मिस इंडिया की कामयाबी के बाद सबसे कम लिंग अनुपात के लिए देशभर में नंबर-वन झज्जर जिले के लोगों की मानसिकता में आने लगा है बदलाव

Devender Dangi
Rohtak / jhajjar : रातों-रात स्टार बनीं हरियाणा के ऐतिहासिक जिले झज्जर के छोटे से गांव कासनी की हाई-प्रोफाइल बेटी कनिष्ठा धनकर को फेमिना मिस इंडिया-2011 के रूप में मिली शानदार कामयाबी बिगड़ते लिंग अनुपात के मामले में देशभर में पिछड़े इस जिले के बाशिंदों की, बेटियों के प्रति सदियों पुरानी संकीर्ण सोच को बदलने में नि:संदेह मील का पत्थर साबित होगी और आखिरकार उन्हें भू्रण हत्या सरीखी सामाजिक बुराई को छोडऩा ही होगा।
यह हम नहीं, कनिष्ठा की कामयाबी को देखकर न केवल इस गांव, बल्कि सम्पूर्ण झज्जर जिले के लोग कह रहे हैं। उनका मानना है कि कनिष्ठा ने मिस इंडिया का खिताब जीतकर बेटियों के प्रति बनी उनकी रूढ़ीवादी मानसिकता पर एक जबरदस्त प्रहार किया हैं। यही वजह है कि अपनी पोती कनिष्ठा की जीत से प्रफुल्लित दादी मां चावली कहती हैं कि कनिष्ठा ने राष्ट्रीय स्तर पर गांव का नाम रोशन कर साबित कर दिया है कि आधुनिक समय में बेटे व बेटियों में कोई फर्क नहीं है। बेटियां भी वो सभी काम कर सकती हैं जो एक बेटा करने में सक्षम हैं। लिहाजा, मेरा भरोसा है कि कनिष्ठा मिस इंडिया के बाद अब मिस वल्र्ड का खिताब भी अपने नाम करेगी। उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंची चावली कहती हैं कि वह अपनी पोती का गांव आने का बेसब्री से इंतजार कर रही है क्योंकि उसने वो कर दिखाया है, जो उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।
नेवी से कमांडर रिटायर्ड कनिष्ठा के दादा मातूराम धनकर का मनाना है कि चारों तरफ से वाहवाही लूटकर उनकी पोती उस रूढ़ीवादी धारणा को पूरी तरह से खारिज कर दिया है, जिसमें बेटियों को समाज के लिए अभिशाप की संज्ञा दी गई थी। महान उपलब्धि के लिए कनिष्ठा व उसके परिजनों को बधाई देते हुए गांव के सरपंच कूड़ेराम कहते हैं कि कनिष्ठा ने मिस इंडिया बनकर खासकर उन लोगों के समक्ष एक मिसाल पेश की है जो बेटियों की तुलना में बेटों को ज्यादा महत्व देते हुए गर्भ में ही बेटियों की हत्या करवाने का जुर्म करते हैं। उनका कहना है कि कनिष्ठा ने ऐसे लोगों को यह अहसास बखुबी करवा दिया है कि वे दिन चले गए जब बेटियों को पराया धन कहा जाता था, आज बेटियां किसी भी क्षेत्र में बेटों से पीछे नहीं है।
सरपंच कूड़ेराम का कहना है कि गांव में आने पर कनिष्ठा को विशेष तौर पर सम्मानित किया जाएगा इसलिए नहीं कि उसने मिस इंडिया का खिताब जीता है, बल्कि इसलिए भी कि उसने ऐसा करके यहां के लोगों की मानसिकता में बदलाव की बहुप्रतिक्षित प्रक्रिया का भी आगाज कर दिया है। गांव के युवा कृष्ण व मुकेश का कहना है कि बेशक गांव के बुजुर्ग लोगों को कनिष्ठा की कामयाबी की ऊंचाई के बारे में अधिक जानकारी न हों मगर बताने पर वह यह कहने से नहीं हिचक रहे हैं कि बेटियों को भी बेटों की तरह की अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने के पर्याप्त अवसर प्रदान किए जाने चाहिएं। एक अन्य युवक बिजेंद्र धनकर का कहना है कि अब समय आ गया है कि बेटियों को भी बेटों की भांति ट्रीट किया जाए क्योंकि बेटियां ही समाज से उस कलंक को मिटा सकती है जो पुरुष प्रधान समाज ने बेटियों को अभिशाप बताकर उस पर लगाया है।

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