रविवार, जनवरी 30, 2011

हरियाणा की सेल, करोड़ों का खेल

नई दिल्ली। हरियाणा सेल पर है। जी हां, दिल्ली से सटे गुड़गांव और फरीदाबाद की सोना उगलने वाली जमीनों को खुले हाथों से लुटा रही है हुड्डा सरकार। इस लूट में निजी कंस्ट्रक्शन कंपनियों पर इस कदर मेहरबान है सरकार कि 17 सौ करोड़ की जमीन की खरीद पर भारी छूट भी दे रही है। झूठ और फरेब का सहारा लेकर हुड्डा सरकार ने लाखों करोड़ों की अरावली की जमीन कौड़ियों के भाव एक निजी कंपनी के हवाले कर दी।
गुड़गांव के वजीराबाद में आवासीय, विश्राम और मनोरंजन परियोजना के नाम पर 350 एकड़ जमीन देश की बड़ी निजी कंस्ट्रक्शन कंपनी को दे दी गई। इस जमीन का आधा हिस्सा यानी 161 एकड़ जमीन अरावली प्लांटेशन स्कीम के तहत आता है। यानी सरकारी फाइलों में ये जंगल कहलाता है। इतना ही नहीं 92 एकड़ जमीन तो पंजाब लैंड प्रिजरवेशन एक्ट 1970 के तहत संरक्षित भी है।
जंगल की जमीन निर्माण कार्य के लिए नहीं दी जा सकती। संरक्षित जमीन भी बिना केन्द्र सरकार की इजाज़त के नीलाम नहीं की जा सकती। ज़ाहिर है कोई भी कंपनी इस तरह की जमीन पर हाथ नहीं डालेगी। लेकिन मेहरबान हरियाणा सरकार ने सभी नियमों को ताक पर रख कर टेंडर प्रक्रिया में ही ये शर्त रख दी कि जमीन के लिए जरूरी क्लीयरेंस वो खुद लेकर निजी कंपनी को देगी।
हुड्डा जी मुख्यमंत्री हैं और उनकी सरकार और 350 एकड़ जमीन पाने वाली निजी कंपनी के रिश्ते काफी गहरे थे क्योंकि सरकार को क्लीयरेंस लेने का सुझाव उसी निजी कंपनी ने दिया था। शायद वो जानती थी कि अगर वो केन्द्र सरकार के पास हरी झंडी के लिए गई तो इजाज़त मिलनी मुश्किल होगी। इसलिए सरकार ने शॉर्ट कट मारा। इससे पहले कि पर्यावरण मंत्रालय उसके आवेदन पर कोई फैसला लेता, हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन डाला। सुप्रीम कोर्ट में आया ऐसा आवेदन सीधे कोर्ट की ओर से बनाई गई सेन्ट्रल एम्पॉवर्ड कमेटी के पास जो जाता है।
आवेदन में हुड्डा सरकार ने दो बातें लिखीं। पहली- पंजाब लैंड प्रिजरवेशन एक्ट के तहत 92 एकड़ जमीन के लिए किसी इजाजत की जरूरत नहीं है क्योंकि ये एक्ट 1970 का है जो सिर्फ 25 साल के लिए था। अब ये कानून खुद-ब-खुद खत्म हो चुका है। दूसरी- अरावली प्लांटेशन स्कीम के तहत उगाए गए पेड़-पौधे जंगल नहीं हैं और प्लांटेशन का पूरा खर्च राज्य सरकार ने उठाया है। इसलिए जमीन के इस टुकड़े के लिए भी इजाजत की जरूरत नहीं है। राज्य सरकार ने यहां तक कहा कि वो फिर भी कोर्ट से इजाज़त इसलिए मांग रही है क्योंकि उसे पर्यावरण की चिंता है।
ये सुप्रीम कोर्ट में कहा गया हरियाणा सरकार का सफेद झूठ था। आईबीएन 7 के पास मौजूद दस्तावेज साफ बताते हैं कि जिस जमीन को खुद सुप्रीम कोर्ट ने जंगल माना है, हुड्डा सरकार ने इस आवेदन में उसे जंगल मानने से ही इंकार कर दिया। दरअसल अरावली खनन मामले में अक्टूबर 2004 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली प्लांटेशन स्कीम को जंगल मानते हुए ये निर्देश दिए कि आगे जाकर ना तो सरकार ना कोई निजी कंपनी ये कह सकती है कि ये जमीन जंगल नहीं है।
यानी हरियाणा सरकार ने एक निजी कंपनी के लिए गलतबयानी कर सुप्रीम कोर्ट से इजाज़त लेने की कोशिश की। मामला कोर्ट की सेन्ट्रल एम्पॉवर्ड कमेटी के पास गया। आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि कमेटी ने भी हरियाणा सरकार का पक्ष लेते हुए अरावली प्लांटेशन स्कीम की जमीन पर निर्माण के आदेश दे दिए।
इस पूरी कहानी में सवाल सुप्रीम कोर्ट की सेन्ट्रल एम्पावर्ड कमेटी पर भी उठ रहे हैं, जिसने अपनी सिफारिश में ना सिर्फ अरावली में हुए प्लांटेशन को बर्बाद करने की इजाज़त दे दी बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ अरावली को जंगल मानने से ही इनकार कर दिया। इतना ही नहीं जहां एक निजी कंपनी को फायदा पहुंचाया गया वहीं रक्षा परियोजना के लिए सरकार की अर्जी खारिज कर दी गई।
एम्पॉवर्ड कमेटी ने हु्ड्डा सरकार के आवेदन पर कहा कि अरावली प्लांटेशन स्कीम की जमीन जंगल नहीं है। राज्य सरकार को इसके बदले 1700 करोड़ रुपए की कमाई हो रही है। प्लांटेशन खुद हरियाणा सरकार ने किया है इसलिए वजीराबाद की इस जमीन पर निर्माण की इजाजत दी जा सकती है। पंजाब लैंड प्रिजरवेशन एक्ट के तहत आने वाली 92 एकड़ जमीन को भी जंगल नहीं माना गया और उसे भी परियोजना में इस्तेमाल करने की इजाज़त दे दी गई। इसके बदले हरियाणा सरकार को फरीदाबाद के बड़खल इलाके में वनीकरण के लिए 407 एकड़ जमीन अधिगृहित करने को कहा गया।
बड़खल की जमीन वही है जिसे डिफेंस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट ऑर्गनाइजेशन यानी डीआरडीओ ने परीक्षण सुविधाओं के लिए मांगा था। लेकिन सीईसी ने उनकी अर्जी खारिज करते हुए जमीन निजी कंपनी के लिए सुरक्षित कर दी। हद तो ये है कि डीआरडीओ को जमीन के लिए खुद क्लीयरेंस लेने की शर्त रखी गई थी लेकिन निजी कंपनी पर मेहरबान सरकार ने उनके लिए केन्द्र सरकार ने इजाज़त लेने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली।
वैसे नीलामी के वक्त भी हुड्डा सरकार ने निजी कंपनी पर मेहरबानी दिखाई थी। नीलामी की शर्तों को इस तरह बदला गया कि सिर्फ एक ही कंपनी उसे पूरा करे। नतीजा ये कि सोना उगलने वाली जमीन के लिए सरकार ने जो रिजर्व प्राइस तय किया था, कंपनी को सिर्फ 2 रुपए प्रति मीटर ज्यादा पर वो जमीन दे दी गई। सवाल विधानसभा में भी उठे लेकिन सरकार ने जैसे कानून की धज्जियां उड़ाने की ठान ली थी।
सरकार जानती है। हुड्डा सरकार के मंत्री भी जानते हैं कि हरियाणा में जमीन की बंदरबांट की जा रही है लेकिन मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा खामोश हैं। आईबीएन 7 की तमाम कोशिशों के बाद भी मुख्यमंत्री बचते रहे। ऐसे में क्या ये कहना गलत होगा कि हरियाणा की जमीन सेल पर है औऱ बेचने वाले वही हैं जिनपर जंगल और जमीन बचाने की जिम्मेदारी है।
IBN-7 ki Report

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