सोमवार, अगस्त 16, 2010

मदवि में रोल नंबर का फर्जीवाड़ा-4

कालेज ने छपवा रखी थी डुप्लीकेट रसीद बुक
- फर्जी अभ्यर्थियों की एक अलग रसीद बुक में से काट रखी थी पर्ची

देवेन्द्र दांगी।
रोहतक, 14 अगस्त।
बी.पी.एड कोर्स की वार्षिक परीक्षा को लेकर महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में हुए रोल नंबर के फर्जीवाड़े के जिम्मेवार महज विश्वविद्यालय के रिजल्ट ब्रांच-वन के दो कर्मचारी ही नहीं थे, बल्कि इस गौरखधंधे को अंजाम तक पहुंचाने में नारनौल के गांव अमरपुर जोरासी स्थित संस्कृति इंस्टीच्यूट ऑफ एजूकेशन एंड टैक्रोलॉजी के प्राचार्य ने भी अहम भूमिका निभाई। दाखिला प्रक्रिया समाप्त होने के बावजूद पहले से भरी हुई सीटों पर दाखिला लेने वाले अभ्यर्थियों को किसी भी सूरत में इस बात का अंदेशा न हो कि उनके दाखिले गैर-कानूनी तौर पर किये जा रहे हैं, इसके लिए कालेज प्राचार्य ने पूरे बंदोबस्त कर रखे थे। फीस लेने के बाद जहां इन अभ्यर्थियों को बाकायदा फीस रिसप्ट दी जाती थी, वहीं रजिस्टर में भी इसकी एंट्री होती थी।
विश्वविद्यालय द्वारा इस सनसनीखेज मामले की जांच करवाने के दौरान यह खुलासा भी हुआ है कि संस्कृति कालेज ने फीस रिसप्ट की विभिन्न रसीद बुक छपवा रखी थी। जेनुअन केसों की फीस रसीद तो कालेज की ओरिजनल कैश रिसिप्ट बुक में से काटी जाती थी जबकि फर्जी दाखिलों की रसीद डुप्लीकेट कैश रिसिप्ट बुक में से काट दी जाती थी ताकि किसी और के स्थान पर दाखिला लेने वाले अभ्यर्थियों के जहन में उनके दाखिले बारे कोई संशय उत्पन्न न हो सके।
राशिदा जमाल द्वारा इस संबंध में की गई शिकायत की गहराई से तफ्तीश के लिए जब दो सीनियर प्रोफैसर की जांच टीम संस्कृति कालेज पहुंची तो कालेज रिकार्ड की छानबीन के बाद उन्हें कुछेक ऐसे दस्तावेज मिले जो यह साबित करने के लिए पर्याप्त थे कि कालेज प्राचार्य ने कई अभ्यर्थियों के साथ जालसाजी की थी। जांच कमेटी ने पाया कि कालेज प्राचार्य ने अभ्यर्थियों से भारी-भरकम फीस वसूलने के लिए अलग-अलग कैश रिसिप्ट बुक छपवाई हुई थी। जिन पांच अभ्यर्थियों को पहले से भरी हुई सीटों पर दाखिला दिया गया था उन्हें जैनुअन फीस रिसिप्ट की बजाय किसी और कैश रिसिप्ट बुक की रसीद थमाई गई थी। यही वजह थी कि कालेज प्राचार्य बेहिचक अपने विद्यार्थियों से गैर-कानूनी रूप से निर्धारित फीस से कहीं अधिक फीस वसूल रहा था।
यहां बता दें कि राशिदा जमाल ने अपनी शिकायत में कहा था कि कालेज प्राचार्य ने बी.पी. एड कोर्स में उसे दाखिला देने की एवज में पहले तो उससे 40 हजार रुपए की भारी भरकम राशि वसूल की और इसके बाद 5 हजार रुपए व्यवहारिक परीक्षा और 5 हजार रुपए वार्षिक परीक्षा हेतु रोल नंबर देने के नाम पर भी लिये थे। इतना ही नहीं, परीक्षा परिणाम आने के बाद उसकी डी.एम.सी. में आई नाम की त्रुटि को दूर करवाने की एवज में भी प्राचार्य ने उससे 15 हजार रुपये अलग से वसूल किये थे। ऐसा नहीं है कि इतनी भारी-भरकम राशि कालेज प्राचार्य ने महज राशिदा जमाल से ही वसूली हो, बल्कि राशिदा जमाल की ही तरह पहले से ही भरी सीटों पर दाखिला पाने वाले चार अन्य लोगों से भी कालेज प्राचार्य ने निर्धारित फीस से अधिक राशि ली होगी, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
कालेज के रिकार्ड की गहराई से जांच करने के बाद मदवि से गई जांच कमेटी ने पाया कि जिन पांच फर्जी अभ्यर्थियों के फार्म वार्षिक परीक्षा का रोल नंबर हासिल करने हेतु विश्वविद्यालय की रिजल्ट ब्रांच में जमा करवाये गये थे, वे सभी संस्कृति कालेज के प्राचार्य ने अपने हस्ताक्षर व ऑफिशियल स्टैम्प के साथ अटैस्टिड कर रखे थे। हस्ताक्षर व स्टैम्प की जुनअननैस का पता लगाने के लिए जब उन्हें कालेज के अन्य विद्यार्थियों के परीक्षा फार्मों पर लगी प्राचार्य की स्टैम्प व हस्ताक्षर से मिलाया गया तो वे एक जैसे ही थे, जो यह साबित करने में काफी थे कि रोल नंबर के इस फर्जीवाड़े में कालेज प्राचार्य की भी बड़ी अहम भूमिका रही है।
ध्यान रहे पंजाब केसरी ने पांच दिन पूर्व इस संबंध में एक विस्तृत समाचार प्रकाशित कर रोल नंबर के नाम पर विश्वविद्यालय में चल रहे फर्जीवाड़े का पर्दाफाश किया था। समाचार में बताया गया था कि विश्वविद्यालय के कर्मचारी किस तरह फीलगुड कर एक-एक रोल नंबर दो-दो लोगों को जारी कर रहे हैं।

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