दो बार जारी की गई थी कांफिडेंशियल लिस्ट
-रिजल्ट ब्रांच-वन के कर्मचारियों को फर्जीवाड़ा करने के लिए ठहराया दोषी
देवेंद्र दांगी।
रोहतक, 13 अगस्त।
बी.पी. एड कोर्स की वार्षिक परीक्षा को लेकर हुए रोल नंबर के फर्जीवाड़े को अंजाम तक पहुंचाने के लिए महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय की रिजल्ट ब्रांच-वन के कर्मचारियों ने रोल नंबर की दो कांफिडेंशियल लिस्ट जारी की थी। पहली लिस्ट में तो सभी जेनुअन कंडिडेट्स को रोल नंबर जारी किये गये थे मगर फीलगुड करके जारी की गई दूसरी कांफिडेंशियल लिस्ट में जेनुअन कंडिडेट्स के रोल नंबर उन पांच लोगों को जारी कर दिये गये, जिन्होंने न तो बी.पी. एड कोर्स में दाखिला ले रखा था और न ही उनका नाम विश्वविद्यालय की रजिस्ट्रेशन ब्रांच में ही दर्ज था। बावजूद इसके, इनको रोल नंबर जारी हो जाना नि:संदेह विश्वविद्यालय में चल रहे रोल नंबर के फर्जीवाड़े की पुन: पुष्टि करता है।
यह सनसनीखेज खुलासा उस जांच में हुआ है जो इस संगीन मामले की तह तक जाने के लिए स्वयं विश्वविद्यालय ने अपने दो सीनियर प्रोफेसर्ज से करवाई है। इस जांच में रिजल्ट ब्रांच-वन के दो कर्मचारियों को रोल नंबर का फर्जीवाड़ा करने के लिए दोषी ठहराया गया है। जांच में कहा गया है कि मामले की गहराई तक जाने के लिए जांच कमेटी ने जब रिजल्ट ब्रांच-वन में जाकर इससे सम्बंधित दस्तावेजों की पड़ताल की तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। दस्तावेजों को खंगालने पर कमेटी को दो ऐसी कांफिडेंशियल लिस्ट मिली, जिसमें पांच रोल नंबर तो एक जैसे लिखे हुए थे मगर, उनके धारकों के नाम अलग-अलग थे। पहली लिस्ट पर बाकायदा लैटर नंबर व तिथि लिखने के साथ-साथ ब्रांच अस्सिटैंट ईश्वर दहिया द्वारा हस्ताक्षर किये गये थे जबकि दूसरी लिस्ट पर तिथि व लैटर नंबर तो एक जैसे थे मगर, किसी ने उस पर हस्ताक्षर नहीं कर रखे थे।
इस फर्जीवाड़े का पता लगने के बाद कमेटी ने जब ब्रांच कलर्क जयदेव से पूछताछ की तो उसने स्वीकार किया कि दूसरी कांफिडेंशियल लिस्ट उसने ही तैयार की थी मगर, उसने यह अपनी मर्जी से नहीं बल्कि ब्रांच अस्स्टिैंट ईश्वर दहिया के कहने पर यह लिस्ट तैयार की थी। इस लिस्ट में नारनौल राजकीय कालेज के परीक्षा केंद्र अधीक्षक से यह गुजारिश की गई थी कि पहली कांफिडेंशियल लिस्ट में शामिल किये गये पांच अभ्यर्थियों के स्थान पर उन पांच नये अभ्यर्थियों को परीक्षा में बैठने दिया जाये, जिनके नाम दूसरी कांफिडेंशियल लिस्ट में दर्ज किये गये हैं। यह लैटर जारी करते हुए कलर्क ने न तो नये अभ्यर्थियों के परीक्षा फार्मों और न ही उनके द्वारा परीक्षा हेतु जमा करवाई गई फीस की रिसिप्ट की जांच की। बावजूद इसके, इन पांचों को पुराने रोल नंबर्स की स्लिप जारी कर दी गई। पूछताछ के दौरान कलर्क का कहना था कि उक्त लोगों के परीक्षा फार्मों को संस्कृति कालेज के प्राचार्य ने अपनी मोहर व हस्ताक्षर से सत्यापित कर रखा था इसलिए उसने फार्मों की गहराई से जांच करने की जहमत नहीं उठाई।
इन्हीं सवालों को लेकर जब जांच कमेटी ने ब्रांच अस्सिटैंट ईश्वर दहिया से पूछताछ की तो उसने भी अपनी गलती स्वीकार करते हुए माना कि दूसरी कांफिडेंशियल लिस्ट जारी करने से पूर्व उन्होंने न तो रजिस्ट्रेशन ब्रांच से नये अभ्यर्थियों के रजिस्ट्रेशन नंबर बारे पता लगाया और न ही इस बारे अपने बॉस से किसी भी तरह की अपू्रवल ली जबकि ऐसे मामलों में सीनियर ऑफिशियल की अपू्रवल लेना नियमों के मुताबिक अनिवार्य है। यही वजह थी कि दूसरी कांफिडेंशियल लिस्ट के बूते पर पांच फर्जी अभ्यर्थियों में से तीन बी.पी. एड की परीक्षा में बैठने में कामयाब हो गये। हैरानी की बात तो यह भी है कि फर्जी रोल नंबर के आधार पर परीक्षा देने वाले इन अभ्यर्थियों को स्वयं भी यह अंदेशा नहीं था कि उनके साथ इतना बड़ा धोखा किया जा रहा है। यही वजह थी कि मामले का खुलासा तब हुआ जब परीक्षा फल में इन अभ्यर्थियों ने अपने रोल नंबर के साथ पुराने अभ्यर्थियों के नाम को पाया।
ध्यान रहे पंजाब केसरी ने तीन दिन पूर्व इस सम्बंध में एक विस्तृत समाचार प्रकाशित कर रोल नंबर के नाम पर विश्वविद्यालय में चल रहे फर्जीवाड़े का पर्दाफाश किया था। समाचार में बताया गया था कि विश्वविद्यालय के कर्मचारी कस तरह फीलगुड कर एक-एक रोल नंबर दो-दो लोगों को जारी कर रहे हैं।
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