** मिर्चपुर अग्रिकांड पर विशेष टिप्पणी **
देवेंद्र दांगी
रोहतक, 5 जून 2010
हरियाणा के जिला हिसार के गांव मिर्चपुर में हुए अग्रिकांड की तपिश अभी भी शांति की चाह रखने वाले जनमानस को झुलसा रही है। शुरूआत में दो गुटों और बाद में दो समुदायों के बीच की खींचतान इतना विकराल रूप ले लेगी शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा। खैर, जो हुआ वो दुर्भाग्यपूर्ण और भाईचारे के लिए बेहद खतरनाक था। हमारे सामाजिक तानेबाने पर भी इस कांड के दूरगामी प्रभाव पडऩे तय नजर आ रहे हैं। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि दोनों ही समुदाय अपनी-अपनी जिम्मेदारी को समझें और गांव में शांति-व्यवस्था कायम करें। कहीं ऐसा न हो कि इस अग्रिकांड से उत्पन्न हुई मतभेदों की खाई भरने की बजाय और चौड़ी होती चली जाए। यदि ऐसा हुआ तो इसका खामियाजा हर आम-ओ-खास को तो भुगतना पड़ेगा ही, साथ ही विकास के पथ पर लगातार आगे बढ़ रहे हमारे प्रदेश की सेहत के लिए भी कतई ठीक नहीं होगा।
मिर्चपुर कांड की गूंज जिले के बाद प्रदेश की सरहदें लांघते हुए देश की सबसे बड़ी पंचायत और माननीय सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुकी है। अदालती फटकार के बाद माहौल सुधारने को शासन-प्रशासन कड़े कदम उठा रहा है और पीडि़त दलितों को भी हर संभव मदद के प्रयास किये जा रहे हैं। इसी बीच दिल्ली स्थित मंदिर में डेरा डाले कुछ दलितों ने हालचाल जानने गये हिसार के जिला उपायुक्त के साथ जो व्यवहार किया गया वह ठीक नहीं है। हरियाणा सरकार व स्थानीय प्रशासन की भूमिका से यदि कुछ लोग नाराज थे तो वे शांतिपूर्वक अपना विरोध जता सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। अपने साथ हुए अन्याय से आजीज न्याय के लिए दिल्ली पहुंचे उन लोगों ने उपायुक्त पर ही हमला बोल दिया। सवाल उठता है कि न्याय मांगने का यह कौन सा तरीका है? डीसी के साथ हाथापाई और बदसलूकी को किसी भी सूरत में जायज नहीं ठहराया जा सकता। कानून हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है फिर भले ही वह पीडि़त पक्ष ही क्यों न हो।
वैसे भी इस कांड के बाद माननीय सुप्रीम कोर्ट हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए भविष्य के प्रति आगाह कर चुका है। ऐसी घटना भविष्य में कोई न होने पाए, इसके लिए भी राज्य सरकार को कड़ी चेतावनी दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने दो महीने के अंदर दलितों के टूटे मकान बनवाने और पीडि़त परिवारों को मनरेगा के तहत रोजगार देने और बेघर हुए लोगों के उचित पुनर्वास के इंतजाम का भी निर्देश दिया है। इधर, राज्य सरकार पहले ही पीडि़तों को मुआवजा एवं अन्य यथासंभव सहायता दे चुकी है। तीन पीडि़त दलितों को नौकरी भी दी गई हैं और पीडि़तों के रहने-खाने का इंतजाम भी किया गया है। ऐसे में दलितों का गुस्सा अब शांत होना चाहिए क्योंकि राज्य सरकार ही नहीं बल्कि माननीय कोर्ट ने भी उनके मर्म को महसूस किया है। उनके लिए और राहत की व्यवस्था भी की जा रही है।
वहीं, डीसी पर हमले के बाद गांव में मोर्चेबंदी करने वाले लोगों को भी समझना चाहिए कि यदि एक पक्ष से गलती हो जाए तो जरूरी नहीं कि दूसरा पक्ष भी उसी राह पर चल पड़े। दिल्ली में डेरा डाले दलितों ने डीसी से हाथापाई कर कानून को अपने हाथ में लिया तो इसका यह मतलब कतई नहीं होना चाहिए था कि दूसरा समुदाय भी लाठियों से लैस होकर सभा करने पहुंच जाए जबकि प्रशासन से इसके लिए कोई मंजूरी तक नहीं ली गई। माना कि एक वर्ग से गलती हो गई लेकिन दूसरे पक्ष को तो कम से कम समझदारी दिखाते हुए शांति से काम लेना चाहिए था। इन लोगों को स्वयं उपायुक्त से ही सीख लेनी चाहिए जो इतना सब होने के बाद भी शांत हैं और कहते हैं कि उन्हें किसी से कोई गिला नहीं।
विचारणीय पहलू यह है कि यदि समाज के वर्गो में इसी प्रकार होड़ लगी रही तो सौहार्द और समरसता कायम करना किसी भी प्रशासन या सरकार के लिए बेहद कठिन हो जाएगा। राज्य सरकार पहले भी अपना काम कर रही थी। माना कि कार्यान्वयन की गति धीमी रही मगर अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद इस काम में तेजी आना लाजिमी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश सर्वोपरी हैं और किसी राज्य सरकार या प्रशासन की हिम्मत नहीं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की नाफरमानी कर सके। और, वैसे भी हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा दलित उत्थान के प्रति शुरूआत से ही गंभीर रहे हैं। दलितों को मुफ्त प्लाट से लेकर उनके सिरों पर छत और पीने के पानी तक की व्यवस्था करने को हुड्डा सरकार ने गंभीरता दिखाई है। और भी अनेक दलित कल्याण की योजनाएं इस सरकार ने सिरे चढ़ाई हैं। ऐसे में मिर्चपुर के दोनों ही समुदायों को भी समझदारी से काम लेते हुए शांति व्यवस्था बहाली की ओर कदम बढ़ाने चाहिएं। इसी में गांव, समाज और प्रदेश की भलाई होगी।
एक कदम तेरा, एक कदम मेरा ।
संग हम चलें, हो सफर पूरा ।।
2 टिप्पणियां:
You are abseloutly right Mr Dangi.
Thanks for complements
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