संदेह के घेरे में आई एमडीयू की इंस्पेक्शन रिपोर्ट
वी.सी. डॉ. रामफल हुड्डा ने इंस्पेक्शन रिपोर्ट की जांच के लिए गठित की स्क्रीनिंग कमेटी
देवेन्द्र दांगी।
रोहतक, 13 जून।
लगता है महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के कुलपति डा. रामफल हुड्डा को बी.एड., डी.एड. व एम.एड कोर्स चलाने वाले स्वपोषित कालेजों का इंस्पेक्शन करने वाली कमेटियों की नियत पर भरोसा नहीं रहा। हाल ही में उनके द्वारा गठित की गई सीनियर प्रोफेसर्स की दो अलग-अलग स्क्रीनिंग कमेटियों से तो कम से कम यही आभास होता है। ये कमेटियां न केवल इंस्पेक्शन करने वाली कमेटी की रिपोर्ट का अपने तरीके से वैरीफिकेशन करेंगी, बल्कि इस संबंध में यदि कोई त्रुटी पाई जाती है तो उससे भी कुलपति को अवगत करवाएंगी। यही नहीं, इन कमेटियों को अपने स्तर पर रिपोर्ट बारे सिफारिश करने का भी अधिकार होगा। दिलचस्प बात तो यह है कि स्क्रीनिंग कमेटी की सिफारिशें इंस्पेक्शन रिपोर्ट के भविष्य का फैसला करने में अहम भूमिका निभाएंगी।सूत्रों के मुताबिक कमेटी नंबर-एक के चेयरमैन छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. राजबीर सिंह हुड्डा होंगे जबकि दूसरी कमेटी की कमान विधि विभाग के प्रोफेसर डा. कृष्ण पाल सिंह महलवार संभालेंगे। इसके अलावा दोनों कमेटियों में साइक्लोजी विभाग के प्रोफेसर डा. राधेश्याम, एजूकेशन विभाग की प्रोफेसर इंदिरा ढुल व हेमंत लता शर्मा तथा इतिहास विभाग के प्रो. अमर सिंह को शामिल किया गया है।वी.सी. रामफल हुड्डा के आदेशानुसार उक्त दोनों कमेटियों के चेयरमैन को जल्द ही अपनी कमेटी के सदस्यों की एक बैठक बुलाकर विश्वविद्यालय में आई विभिन्न इंस्पेक्शन रिपोर्ट की वैरिफिकेशन करने का कार्य शुरू करने के लिए भी कहा गया है।कहना न होगा कि एमडीयू की सीमा के अंतर्गत बी.एड, डी.एड. व एम.एड कोर्स करवाने वाले ऐसे-ऐसे कालेज बिना रोक टोक के चल रहे हैं, जिन्होंने इन कोर्सों को चलाने के लिए तय की गई न्यूनतम जरूरी शर्तों को भी पूरा नहीं कर रखा है। ऐसा एमडीयू द्वारा गठित विभिन्न इंस्पेक्शन कमेटियों द्वारा किन्ही कारणों से इन कालेजों के प्रति अपनाई गई उदारता से संभव हो पाया है।हैरानी की बात है कि मामला संज्ञान में आने के बावजूद एमडीयू प्रशासन तक ने न तो ऐसे कालेजों और न ही इंस्पेक्शन कमेटियों के खिलाफ कोई सख्त कदम उठाया। यही वजह है कि काफी संख्या में ऐसे बी.एड, डी.एड. व एम.एड कालेज बदस्तूर नियमों को ताक पर रखकर उक्त कोर्स चला रहे हैं, जिनके पास न तो बेसिक इंफ्रास्टै्रक्चर है और न ही उन्होंने रेगुलर स्टाफ नियुक्त कर रखा है।उधर, विश्वविद्यालय के शिक्षकों का कहना है कि वी.सी. को यदि इंस्पैक्शन कमेटी की रिपोर्ट पर ही भरोसा नहीं है तो स्क्रीनिंग कमेटी नियुक्त करने की बजाए उन्हें स्क्रीनिंग कमेटी को ही इंस्पेक्शन करने की ऑथारिटी दे देनी चाहिए ताकि इस प्रक्रिया में होने वाले अनावश्यक समय की बर्बादी को रोका जा सकें।
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